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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/५५

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हितोपदेश गया । दमनक संजीवक से वोला : ओ बैल ! मेरी ओर देख । मै महाराजाधिराज पिंगलक की ओर से वन की रक्षा के लिये नियुक्त किया गया हूँ। वह देखो, हमारा सेनापति करटक तुम्हें आजा देता है कि तुम शीघ्र ही हमारे वन की सीमा से बाहर चले जाओ । हमारे स्वामी जरा-जरा-सी बातों पर गरम हो जाते हैं। क्रोध मे क्या कर बैठे, कोई कुछ कह नहीं सकता। यह सुनते ही संजीवक करटक के सामने हाथ जोड़कर खड़ा होगया और बोला : सेनापते! करटक : ओ वैल! यदि तू इस वन मे रहना चाहता है तो चलकर हमारे स्वामी को प्रणाम कर। संजीवक: स्वामी! कौन स्वामी ? करटक : हमारे स्वामी महाराधिराज सिह पिंगलक । उसके पास ही तुम्हे जाना होगा। संजीवक के होश उड़ गये। वह डरते-डरते वोला : सेनापति, पहले मुझे अभय वचन दो। करटक–ओ मूर्ख बैल, तू इतना क्यों डरता है। वह तो महापराक्रमी सिंह है। तुझ जैसे तृणाहारी जीव को मारना तो वह अपना तिरस्कार समझता है। मूर्ख वैल ! तेरी यह आशंका तो नितान्त निर्मूल है। सिह यदि गर्जता है तो मेघ गर्जन के प्रत्युत्तर मे । वह कभी भी सियारों का शब्द सुनकर थोड़े ही गर्जन करता है ? इतना समझाकर दोनों संजीवक को अपने साथ ले गये। पिंगलक के दरवार के निकट पहुंचकर उन्होंने संजीवक को.