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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/७४

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सुहृभेद ७९ की। विष्णु भगवान् ने भी समुद्र को बुला भेजा । वेचारे समुद्र ने विष्णु जी की आज्ञा पाते ही अंडे वापस कर दिए । टिटीहरी अपने अडों को पाकर खिल उठी। x x x x दमनक : महाराज, इसीलिए मै कहता हूँ कि जब तक संजीवक के सहायको का पता न चले, तब तक उसके वल का अनुमान कैसे लगाया जा सकता है ! पिंगलक : मै तुम्हारी वाते तो मानता हूँ । पर यह कैसे जाना जाये कि वह मुझ से द्वेष करता है। दमनक : जिस समय वह आपके सामने अपने पैने सीगो को उठाकर युद्ध के लिये आयेगा, उस समय इस बात का भी पता चल जायेगा। दमनक उठा और वन की ओर चल पडा । कुछ दूर चलने पर उसे संजीवक घास चरता हुआ दिखाई दिया। दमनक भी अपने को कुछ चिन्तित-सा दिखाने हुए चलने लगा। उसको उदास देखकर सजीवक ने पूछा : मित्र, आज उदास क्यो दिखाई दे रहे रहो ? कुशल तो

- दमनक · मित्र, मै तो बड़ी भारा दुविधा में पड़ा हुआ हूँ। यदि कुछ कहता हूँ तो राजा से विश्वासघात करता हूँ। यदि नही कहता तो वन्धु के साथ अन्याय करता हूँ । ठीक वैसे ही जैसे कि डूबता हुआ आदमी सर्प का सहारा पाकर उसे छोड़ना भी नही चाहता और पकड़ भी नहीं सकता। संजीवक : मित्र फिर भी सब कुछ विस्तार सहित कहो । ।