८० हितोपदेश दमनक • यह सच है कि राजा के विचार गुप्त रखने चाहिएँ । परन्तु, क्योकि तुम मेरे विश्वास पर आए हो, अतएव मै तुमको सकट से छुड़ाऊंगा । सुनो-राजा पिंगलक एक दिन एकान्त मे कह रहा था कि मै सजीवक को मारकर अपने बन्धुओं को निमन्त्रण दूगा। सजीवक यह मै कैसे विश्वास करूँ कि वह मुझे मारना चाहता है ? दमनक : जब पिंगलक लाल-लाल आँखे दिखाते हुए पूंछ उठाकर तुम्हारी ओर आयेगा, तब स्वयं पता चल जायेगा। सजीवक से इस प्रकार कहकर दमनक करटक के पास गया और फिर उसे लेकर सिह के पास जाकर बोला : महाराज, वह देखिए । संजीवक आपकी ओर हमले के लिये आ रहा है । अतः आप भी युद्ध के लिये तैयारहो जाये। दमनक का इतना कहना था कि पिंगलक को आँखे लाल हो गई। पूंछ क्रोध के कारण अकड़ गई । वह संजीवक की ओर वढ चला । पिंगलक को पूछ उठाकर युद्ध के लिये प्रस्तुत देख कर संजीवक भी प्रस्तुत हो गया । दोनो के युद्ध में सजीवक 1 मारा गया । सजीवक की मृत्यु से पिंगलक को बहुत दुःख हुआ। वह उदास होकर सोचने लगा कि मैने यह बड़ा भारी पाप किया। पिगलक को इस तरह उदास देखकर दमनक उसके पास आया और बोला: महाराज की जय हो ! आप उदास क्यों है महाराज ? शत्रु को तो जिस भांति हो मारना ही चाहिये । नीति कहती है कि राज्य की इच्छा करने वाले शत्रु को कभी भी जीवित न
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