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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/८

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Azon AriN १ - मित्रलाभ न मातरि, न दारेषु, सोदयें, न चात्मने । विश्वासस्तदृशः पुसा यादृग मित्रे स्वभावजे ॥ . . . मनुष्य को माता, पली, पुत्र और भाई में भी उतना विश्वास नहीं होता जितना स्वाभाविक मित्र में होता है। . गोदावरी के तट पर सेमर का एक विशाल वृक्ष था। उस की शाखाओ पर भाति-भांति के पक्षी रहते थे। उसी वृन पर लघुपतनक नाम का एक कौवा भी रहता था। एक दिन ३