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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/९

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१२ हितोपदेश . प्रातःकाल उसे एक शिकारी दिखाई पड़ा। उस शिकारी को देखकर वह ऐसे डरा मानो उसी का काल मनुष्य-रूप में आ रहा हो । वह सोचने लगा-यह अपशकुन आज न जाने क्या अनर्थ करेगा? शिकारी अपने मार्ग पर बढ़ता ही गया । लघुपतनक भी शिकारी का भेद जानने के लिये गुप्त रूप से उसके पीछे-पीछे चल दिया। उसने देखा, शिकारी कुछ दूर चलकर एक वृक्ष के नीचे ठहर गया। उसने अपनी पोटली खोली और कुछ चावलों को पृथ्वी पर बिखेर दिया। फिर जाल फैलाया और पक्षियों के फंसने की प्रतीक्षा में पास ही छिपकर बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद कबूतरों का सरदार चित्रग्रीव, सपरि- वार उड़ता हुआ उसी मार्ग से निकला। वहाँ पृथ्वी पर बिखरे चावलों को देखकर कबूतर ठहर गये और चावल खाने को लपके । सरदार चित्रग्रीव उन कबूतरों में सबसे अधिक चतुर था। उसने कबूतरों से कहा : साथियो, इस निर्जन वन में चावलों के दाने देखकर मुझे विस्मय होता है। अवश्य कुछ दाल में काला है। हमें यही उचित है कि हम इनको जैसे-का-तैसा छोड़ दें और आगे बढ़ें। कही लेने के देने न पड़ जायें। यह नहीं हो सकता! 'सव कबूतर एक ही स्वर में बोल ... । उठे

। Sum परोसी हुई थाली से कैसे मुंह मोडा जाये ? एक और कबूतर ने भी चित्रग्रीव का समर्थन करते हुए कहा: 1 प