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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/८३

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८८ हितोपदेश दूसरा इन्द्र है। आप लोग इस मरु-भूमि में रहकर क्या करते है। चलिए, हमारे राज्य में चलिए। इतना सुनना था कि सब क्रोध से पागल हो उठे। किसी ने ठीक कहा है- पयः पानं भुजंगानां केवलं विष वर्धनम् । वैसे तो दूध से सब को लाभ ही होता है। पर यदि सर्प को पिलाया जाए तो उसका तो विष ही बढ़ता है। इसी प्रकार किसी मूर्ख को अच्छी बात समझाने से उसको क्रोध ही आता है। जैसे कि बन्दरों को उपदेश देने से पक्षी दुखी हुए। राजा : कैसे ? दीर्घमुख : सुनो महाराज!