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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/९०

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विग्रह चिन्तित हूँ। आप लोग मेरे साथ चले। मैं आप लोगों को पास ही एक सरोवर दिखाता हूँ। वह इस वन मे सब से बड़ा सरोवर है। उसका जल कभी भी समाप्त नही हो सकता। इतना कहकर विशालकर्ण उन सबको एक तालाब पर ले गया। उस दिन से सारे वन के हाथी उसी तालाब पर जाने लगे। तालाब के किनारे खरगोगों का एक दल रहता था। हाथियों के आने-जाने से कई खरगोश नित्य उनके पैरों के नीचे आकर मर जाया करते । हाथियो ने इसकी कभी भी चिन्ता न की । पर खरगोश भला कव चुप रह सकते थे। उन्होने एक सभा की और अपने परिवार की रक्षा का उपाय सोचने लगे। उसी समय विजय नाम का एक बूढा खरगोश उठा और बोला : भाइयो, आप दुःख न करें। मै प्रतिज्ञा करता हूँ कि इन हाथियो का तालाव पर आना ही वन्द कर दूंगा। इस प्रकार प्रतिज्ञा करके वह विशालकर्ण की ओर चला और एक ऊँची चट्टान पर बैठकर विशालकर्ण हाथी से वोला : राजन्, मै विजय नाम का खरगोश हूँ। भगवान् चन्द्रमा का सेवक हूँ। उन्होंने मुझे अपना दूत बनाकर आपके पास भेजा है। भगवान् चन्द्रमा का नाम सुनते ही विशालकर्ण के आश्चर्य की सीमा न रही । वह बोला : आज चन्द्र भगवान् को मुझ से कौन-सा काम आ पड़ा? चन्द्र भगवान् ने मुझे क्या आज्ञा दी है ? विजय : राजन् ! में दूत हूँ। मै कभी भी असत्य नही