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पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/९७

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i १०२ हितोपदेश < तोता बोला : इसीलिये मै कहता हूँ कि दुष्ट बगुले के साथ नही जाऊंगा। दीर्घमुख : तत्पश्चात् वहाँ के राजा ने मेरा यथोचित सत्कार करके मुझे विदा कर दिया और मेरे पीछे ही तोते को भेज दिया । वह भी मेरे पीछे-पीछे आ रहा होगा। दीर्घमुख की बात सुनकर राजहंस का मन्त्री चक्रवाक हंसकर बोला: महाराज, इसने दूसरे के राज्य में जाकर भी राजकार्य ही किया है, पर उसमें मूर्खता के अतिरिक्त और है ही क्या ? हिरण्यगर्भ : अब बीती बातों में क्या रखा है ? इस समय तो प्रस्तुत विषय पर ही विचार-विमर्श करना चाहिये । चक्रवाक : महाराज, नीति कहती है कि आप अपने गुप्तचर भेजें जो कि शत्रु का समस्त समाचार हमें भेजते रहें। पर यह गुप्तचर ऐसे होने चाहिएं जो जल और थल दोनों पर ही चल सकें। मेरे विचार से इस बगुले को ही भेजना चाहिए। इतने में ही द्वारपाल ने आकर निवेदन किया : द्वारपाल : महाराज, जम्बुद्वीप से कोई तोता आया है, आप से मिलना चाहता है। मन्त्री : उसे अतिथिशाला में ठहरा दो। हिरण्यगर्भ : तोते के आने से पहले ही हमें अपने किले का निर्माण कर लेना चाहिये । सारस को इस कार्य के लिए नियुक्त करो। मन्त्री : महाराज, आप चिन्ता न करें। यह जलाशय ही हमारा किला है। इसमें केवल भोजन की कमी है। द्वारपाल ने फिर सिर झुकाकर प्रणाम करते हुए कहा :