सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हितोपदेश.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ करे कोई और भरे कोई एक वार भगवान् गरुड़ यात्रा करते हुए समुद्र तट पर र आ रहे थे। उनके दर्शनार्थ स्थान-स्थान से पक्षियों के समूह समुद्र तट की ओर चले। किसी वन में एक कौआ और वढेर परस्पर मित्र की भांति रहते थे। उन्होंने भी समुद्र की ओर प्रयाण करने का निश्चय किया। दोनों समुद्र की ओर चल दिये। रास्ते में कौए ने देखा कि कोई ग्वालिन अपने सिर पर दही की हांड़ी रखे हुए जा रही थी। फिर क्या था? कौए ने तेजी से पंखों को चलाना प्रारम्भ किया। भोली टेर भी उसका साथ निभाने की इच्छा से पीछे-पीछे उड़ने लगी । ग्वालिन के पास पहुँचकर कौला उसकी हांड़ी पर बैठ गया। वटेर भी बैठ गई। पर उसने कौए की भांति चुराकर दही खाना उचित न समझा । थोड़े समय वाद ग्वालिन का घर आ गया। उसने हांड़ी नीचे उतारी। कौए और बटेर को हांडी पर बैठा देखकर उसने उन्हे उड़ाने के लिए हाथ उठाया। कोला तो उसी समय उड़ गया, पर अपने को निरपराव समझ कर बटेर धीरे-धीरेही चलती रही। फलस्वरूप उसे ग्वालिन ने पकड़ लिया और मार डाला। 1 x x x x ( १०१)