पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

पहला अध्याय २६ विचारधारा ने उपनिषदों के स्वर में स्वर मिलाते हुए 'सोऽहं को घोषणा की तो वह मुसलमानों को भड़कानवाली बाल न रह गई थी। समानुभूति को इस भूमिका में काबा काशी हो गया और राम रहोम । इस विचारधारा ने आँधो को तरह आकर मनुष्य और मनुष्य के बीच के भेद उड़ा दिए। उस जगत्पिता परमात्मा को सृष्टि में सब बराबर हैं, चाहे वह हिन्दू हों, चाहे मुसलमान, चाहे कोई अन्य धर्मावलंबी । इस प्रकार अनस्ति भेद-भावों के कारण मनुष्य के पवित्र रक्त से भूमि को व्यर्थ रँगने की मूर्खता स्पष्ट हो गई। जब जाति तथा धर्म के विभेद, जिनके साथ की कटु स्मृतियाँ अभी ताजी थीं, इस प्रकार दूर कर दिए जा सकते थे तो कोई कारण न था कि वर्ण-भेद को भी क्यों न इसी तरह मिटा दिया जाय । आत्मा और परमात्मा की एकता को अनुभव करनेवाले वेदांती के लिये तो वर्ष-भेद मिथ्या पर आश्रित था। भगवद्गीता के अनुसार. तो वास्तविक पण्डित विद्या-विनय-संपन्न ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और श्वपाक ( चांडाल ) में कोई भेद नहीं समझता x किन्तु इसका यह अभिप्राय कदापि नहीं कि परंपरागत व्यवस्था में वेदान्ती कोई परिवर्तन उपस्थित करना चाहता था। भेद को न रहने पर भेद न समझने में कोई अर्थ नहीं। वेदान्त की विशेषता इसमें है कि व्यावहारिक जगत् में इन सब भेदों के बहते भी वह पारमार्थिक जगत् में उनमें कोई भेद नहीं मानता। अगर गीता कहती.. कि पंडित-पंडित में कोई भेद नहीं है तो उससे कोई क्या समझना ! वेदांत ब्राह्मण और शूद के बीच के भेद को उसी . 11 2 काबा फिर कासी भया, राम भया रहीम |-क० ग्रं०, पृ. ५५, १०॥ x विद्या-विनय सम्पन्ने ब्राह्मण गवि हस्तिनि । शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदशिनः । ..