४० हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय यह भी कहा जाता है कि सं० १५०५ (सन् १४४८ ई.) में अचल- दाम मुसलमानों के साथ युद्ध में काम आये । इन सब बातों को ध्यान में रखकर जनरल कनिंवम ने पीपा का समय सं० १४९७ से १४४२ (ई० सन् १३६० से १३८५)- तक माना है। सं० १२५० से १५०५ तक २५५ वर्षों में पीपाजी के वंश में ३० पीढ़ियाँ हुई जिससे प्रत्येक पीढ़ी के लिए लगभग २५ वर्ष ठहरते हैं। इस हिसाब से १४२० से १४५५ तक उनका समय मानना भी अनुचित नहीं। यह सामान्य- तया उनका राजन्व-काल है। उनका जीवन-काल लगभग सं० १४१० से १४६० तक मानना चाहिए। सधना खटिक था। बेचने के लिये मांस तौलते समय बटखरे की जगह शालिग्राम की बटिया रखता था । एक वैष्णव को यह देखकर बुरा लगा और शालिग्राम की बटिया माँगकर ले गया। रात में उसे स्वप्न हुआ कि भाई, तुम मुझे बड़ा कष्ट दे रहे हो । अपने भक्त के यहाँ मैं ( तराजू के) झूले पर झूला करता था, उस सुख से तुमने मुझे वंचित कर दिया है । भला चाहो तो मुझे वहीं दे पात्रो। और वह दे पाया। धन्ना जाट था और राजपूताने के टाँक इलाके में धुअन गाँव में रहता था। यह स्थान छावनी देवली से बीस मील की दूरी पर है। सेन नाई था जो किसी राजा के यहाँ नौकर था। उसकी भक्ति की इतनी महिमा प्रसिद्ध है कि एक बार जब वह साधु-सेवा में लीन होने के कारण राजा की सेवा करने के लिए यथा-समय न जा सका, तब स्वयं भगवान् सेन का रूप धारण कर राजा की सेवा करने पहुंचे। रैदास काशी के चमार थे। प्रियादासजी ने इनके सम्बन्ध में कई आश्चर्यजनक कहानियाँ लिखी हैं । चित्तौर की माली रानी इनकी शिष्या + 'माकियालाजिकल सर्वे रिपोर्ट', भाग २, पृष्ठ २६५-६७ ।
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