पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१२५

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दूसरा अध्याय ४३ ८. कबीर संब उनमें विद्यमान थी। इस प्रकार इन संतों ने कबीर के लिए रास्ता खोला जिससे इन प्रवृत्तियों को चरमावस्था तक ले जा सकना उनके लिए आसान हो गया। कबीर जुलाहा थे। अपने पदों में उन्होंने बार-बार अपने जुनाहा होने की घोषणा की है। जुलाहे मुसलमान होते हैं। हिंदू जुलाहे कोरो कहलाते हैं। एक स्थान पर उन्होंने अपने को 'कोरी' भी कहा है। संभव है, 'जोलाहा' कहने से उनका अभिप्राय केवल पेशे से हो, उनके धर्म का उसमें कोई संकेत न हो। जनश्रुति के अनुसार वे जन्म से तो हिंदू थे, किंतु पाले-पोसे गये थे मुसलमान के घर में । परंतु इस बात का प्रमाण मिलता है कि उनका जन्म बस्तुतः मुसलमान परिवार में हुआ था। एक पद में, जो आदिग्रंथ में रैदास के नाम से और रजबदास के सर्वांगी में पीपा के नाम से मिलता है, लिखा है कि जिसके कुल में ईद- बकरीद मनाई जाती है, गोवध होता है, शेख शहीद और पोरों की मनौती होती है, जिसके बाप ने ये सब काम किये उस पुत्र कबीर ने ऐसी धारणा धरी कि तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गया |x पदकर्ता का अभिप्राय यह है कि भक्ति के लिए कुल की उच्चता कदापि आवश्यक ॐ तू ब्राह्मण, मैं कासी का जुलाहा, चीन्हि न मोर गियाना।- क० ग्रं॰, पृ० १७३, २५० और उदाहरणों के लिए देखिए क० ग्रं, पु. १२८, १२४; १३१, १३४; १८१, २७० और २७१ । + हरि को नाँव अभै पद दाता, कहै कबीरा कोरी। -क० ग्रं, पृ० २०५, ३४६ । x जाके ईद बकरीद कुल गऊरे बध करहिं मानियहिं शेख शहीद पीरा । जाके बापि ऐसी करी, पूत ऐसी धरी, तिहुरे लोक परसिध कबीरा ॥ -'ग्रन्थ', पृ. ६६८; 'सर्वांगी', पौड़ी हस्तलेख पृ० ३७३, २२ ।