हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय नहीं। इससे प्रकट होता है कि कबीर मुसलमान कुल में केवल पाले. पोसे ही नहीं गये थे, पैदा भी हुए थे । पोपा और रैदास,दोनों कबीर के समकालीन ओर गुरुभाई थे। इसलिए कबीर के कुल के संबंध में जो कुछ उनमें से कोई कहे, उस पर विश्वास करना चाहिए। जनश्रुति के अनुसार कबीर के पोप्य पिता का नाम नीरू अथवा नूरुद्दीन था और माता का नीमा जिन्हें उसके वास्तविक माता-पिता के ही नाम समझना चाहिए। जनश्रुति ही के अनुसार कबीर का जन्म काशी में हुआ था और निधन मगहर में | इस बात में तो संदेह नहीं कि कबीर उस प्रांत के थे जहाँ पूरबी बोली जाती है, क्योंकि उन्होंने स्वयं कहा है कि मेरी बोली 'पूरबी' है, जिसे कोई नहीं समझ सकता; उसे वही समझ सकता है जो ठेठ पूरब का रहनेवाला हो !x पंजाब में संगृहीत ग्रंथ साहब में भी उनकी बाणी ठेठ पूरबो है किसी ज्ञान-गर्वित ब्राह्मण के यह कहने पर कि तुम जुलाहे हो, ज्ञान-वान क्या जानो ?' उन्होंने बड़े गर्व के साथ कहा था मेरा ज्ञान नहीं पहचानते ! अगर तुम ब्राह्मण हो तो मैं भी तो 'काशी का जुलाहा' हूँ + । सचमुच काशी में किस जिज्ञासु को हान की प्राप्ति नहीं हो जाती ? आदि ग्रन्थ में के एक पद में उन्होंने कहा है कि सारा जोवन मैंने काशी ही में बिताया है ।= अतएव इस बात में संदेह नहीं
- इन पदों में यह स्पष्ट नहीं कहा गया है कि उनके माता-पिता
मुसलमान थे । सम्भव है, यहां माता-पिता से तात्पर्य पालने-पोसनेवाले माता-पिता से हो ।-संपादक | x मेरी बोली पूरबी ताहि लखे नहिं कोय । मेरी बोली सो लखे धुर पूरब का होय ॥-क० ग्रं०, पृ० ७६ पाद २। +देखो पृष्ठ ४४ की टिप्पणी (१)। = सकल जनम सिवपुरी गवाया-'ग्रन्थ', पृ० १७६, १५ ।