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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१३

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प्राक्कथन प्रस्तुत रचना हिंदी-सम्बन्धी अध्ययन के क्षेत्र में एक भारी आवश्यकता की पूर्ति करती है। इसका विषय हिंदी के उन रहस्यवादी कवियों की एक निर्दिष्ट शाखा है, जिन्हें साधारण प्रकार से हम निर्गुए कवि कहा करते हैं। अभी तक इन कवियों का अध्ययन सुव्यवस्थित रूप से नहीं हो पाया था। अभी तक साधारणतः यही विश्वास किया जाता रहा है कि इनका कोई अपना दार्शनिक सिद्धांत नहीं है और भिन्न-भिन्न प्राध्यात्मिक विषयों से सम्बन्ध रखनेवाली इनको धारणाएँ अस्पष्ट एवं क्रमरहित हैं। डॉ० बड़थ्वाल ने इस शाखा के साहित्य का विस्तृत रूप से गंभार अनुशीलन किया है और अनेक महत्वपूर्ण हस्तलिखित ग्रंथों से भी सहायता ली है । यह उनके लिए एक बड़े गौरव की बात है कि इन संत कवियों के उपदेशों में उन्होंने दार्शनिक एवं नैतिक विचारधाराओं का एक निश्चित क्रम ढूंढ निकाला है। उन्होंने एक ऐसे तत्त्वज्ञान की सुन्दर व्याख्या की है जो बहुत उच्च व सूक्ष्म होता हुआ भी स्वभावतः व्यावहारिक है। उन्होंने हिंदी काव्य के इस क्षेत्र पर अत्यधिक प्रकाश डाला है और हमारे तद्विषयक ज्ञान में भी वृद्धि को है। अपने विषय की चर्चा करते समय उन्होंने उसे अनावश्यक विस्तार नहीं दिया है और उसका निरूपए भी सरस किया है। मैं उनकी सफलता पर उन्हें बधाई देता हूँ। श्यामसुन्दरदास