सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय 'हम काशी में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये। कबीर की मानी जानेवाली इस उक्ति का भी यह अर्थ नहीं कि रामानन्द ने कबीर को जगाया बल्कि यह कि कबीर ने रामानन्द को जगाया। परतु यह मान लने पर भी, यह कोई नहीं कह सकता कि यह रामानन्द को कबीर का गुरु मानने में बाधक है। गोरखनाथ ने मछंदरनाथ को जगाया किन्तु यह कोई नहीं कहता कि गोरखनाथ मछंदर के चेले नहीं थे। असल में यह वचन यही बतलाने के लिए गढ़ा गया है कि रामानन्द के चेले होने पर भी कबीर उनसे बड़े थे ।. परंतु स्वतः कबीर ने अपने श्रापको अपने गुरु से बढ़ाने का प्रयत्न नहीं किया और रामानन्द की मृत्यु का उल्लेख करते हुए वीजक के एक पद में बड़े उत्साह से उन्होंने उनकी महिमा गाई है- आपन असx किये बहुतेरा। काहु न मरम पाव हरि केरा ॥ इंद्री कहाँ कर विसरामा । (सो) कहाँ गये जो कहत हुते+रामा । सो कहाँ गये जो होत सयाना । होय मृतक वहि पदहि समाना । रामानंद रामरस माते । कहहिं कबीर हम कहि कहि थाके॥ कबीर कहते हैं कि उन हरि का भेद कोई नहीं जानता, जिन्होंने बहुतों को अपने समान कर दिया है। [ लोग समझते हैं कि रामानंद वैसे ही मर गये जैसे और मनुष्य मर जाते हैं, इसी से पूछा करते हैं-] उनकी इंद्रियाँ कहाँ विश्राम कर रही हैं ? उनका 'राम' 'राम' कहनेवाला जीवात्मा कहाँ गया ? [ कबीर का उत्तर है कि ] वह मरकर परम पद में समा गया है । [ क्योंकि ] रामानंद रामरूप मदिरा से मत्त ® क० श°, भाग २, पृ०६१ । x कुछ प्रतियों में 'अपन आस किजे', पाठ भी मिलता है । + होते। 'बीजक', पद ७७ ॥