पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१३७

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दूसरा अध्याय । . कबीर का समय बड़े विवाद का विषय है ! उनके जन्म के संबंध में यह दोहा प्रसिद्ध है- चौदह सौ पचपन साल गये, चंद्रवार एक ठाठ ठये। जेठ मुदी वरसायत को, पूरनमासी तिथि प्रगट भये ।। इसके आधार पर कबीर कसौटी में उनका जन्म सं० १४५५ के ज्येष्ठ की पूर्णिमा को सोमवार के दिन माना गया है । बावू श्यामसुन्दर दास जी ने 'साल गये' के आधार पर उसे १४५६ सं० माना है, जो गणित के अनुसार भी ठीक बैठता है। परंतु इस संवत् को मानने से रामानंद जी की मृत्यु (सं० १४६७) के समय कबीर की अवस्था केवल ग्यारह वर्ष को ठहरती है, जिससे उसका रामानंद का शिष्य होना घटित नहीं होता। रामानंद जी के शिष्य होने के समय कबीर निरे बालक न रहे होंगे। बिना विशेष विरक्तावस्था के जागरित हुए न रामा- नंद ही किसी मुसलमान को चेला बना सकते थे और न कबीर हो किसी हिंदू के चेले बनने के लिए उत्सुक हो सकते थे। उस समय कम से कम उनकी अवस्था अठारह वर्ष की होनी चाहिये । एक-दो वर्ष कम से कम उसने रामानंद जी का सत्संग भी किया होगा । अतएव कबीर का जन्म सं० १४४७ से पहले हुआ होगा, पीछे नहीं । कबीर के समय तक नामदेव करामाती कथाओं के केन्द्र हो गये थे जिससे मालूम होता है कि वे कबीर से पहले हुए थे। नामदेव की मृत्यु सं० १४०७ के लगभग हुई थी, अतएव कबीर का प्राविभाव सं. १४०७ और १४४७ के बीच किसी समय में मानना चाहिए। मेरी समझ में सं० १४२७ के आस-पास उनका जन्म मानना उचित है। कबीर साहब पीपा के समकालीन थे। पीपा के जीते जी कबीर को बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हो गई थी। पीपा का समय हम १४१० से १४६० तक मान आये हैं । कबीर पीपाजी से अवस्था में छोटे हो सकते हैं, 1