पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१४०

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1 हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय स्त्री-वाचक हो सकता है। आदिग्रंथ में एक पद ऐसा भी है जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे कबीर का विवाह धनिया नामक युवती से हुश्रा हो जिसका नाम बदलकर उसने रामजनिया कर दिया हो। इसी से कबीर की माता को शोक होता है, क्योंकि 'रामजनी' तो वेश्या अथवा वेश्या-पुत्री को ही कह सकते हैं । परन्तु इससे कबीर का अभिप्राय दूसरा ही है । 'माता' माया है और धनिया' उसका प्रधान अस्त्र कामिनी और 'रामजनी' भक्ति, जिसमें कुल-मर्यादा का कोई ध्यान नहीं रखा जाता। जनश्रुति के अनुसार कबीर के एक पुत्र और एक पुत्री थी । पुत्र का नाम कमाल, पुत्री का कमाली था । पंथवालों के अनुसार ये उनके सगे लड़के लड़की नहीं थे, बल्कि करामात के द्वारा मुर्दे से जिंदे किये हुए बच्चे थे जो उन्हीं के साथ रहा करते थे। इस छोटे से परिवार के पालन के लिए कबीर को अपने करघे पर खूब परिश्रम करना पड़ता था। परन्तु शायद उससे भी पूरा न पड़ता था, इसी से कबीर ने दो वक्त के लिए दो सेर आटा, आध सेर दाल, पाव भर घी और नमक ( चार आदमियों की खुराक ) के लिए ॐ परमात्मा से प्रार्थना की जिससे निश्चित होकर भजन में समय बिता सकें। साधु-सेवा की कामना से और अधिक अर्थ-संकट पा उपस्थित होता था। बाप की कमाई शायद इसमें खर्च हो चुकी थी । कबीर की स्त्री को यह बात खलती थी कि अपने बच्चे तो घर में भूखे और दुखी रहें और साधु लोगों की दावत होती रहे x । मालूम होता है कि कमाल धन कमाकर संग्रह करके ® दुइ सेर माँगौं चूना । पाव घीउ सँग लूना ।। आध सेर माँगों दाले । मोको दोनों बखत जिवाले ॥... -क० ग्रं॰, पृ० ३१४, १५६ । ४ इन मुंडिया सगलो द्रव खोई । आवत जात कसर ना होई ॥... लरिका लरिकन खैवो नाहिं । मुंडिया अन दिन धाये जाहिं 1... -वही २९६, १०६॥