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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१४१

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दूसरा अध्याय ५६ माता को प्रसन्न करता था । परन्तु इससे कवीर को दुःख होता था 18 पिता की मृत्यु पर उसने भी अपने पिता के मार्ग का अनुसरण किया और वह अहमदाबाद की तरफ उनके सिद्धांतों का प्रचार करता रहा। कबीर ने सत्य के शोध में अपना जीवन व्यतीत किया था। अज्ञान के विरुद्ध उन्होंने घोर युद्ध किया था। हिंदू-मुसलमान दोनों पर उन्होंने. व्यंग्यों की बाण-वर्षा की, जिससे दोनों तिलमिला उठे। सुलतान के दरबार में उनकी शिकायतें पहुँची । 'राजा राम' का सेवक भला पृथ्वी के किसी शासक की क्या परवा करता ? उसने बेधड़क सुलतान का सामना किया। x काजी ने दंड सुनाया। पर, कहते हैं कि हाथ-पाँव बाँधकर गंगा में डुबाने, आग में जलाने, हाथी से कुचलवाने के सब प्रयत्न निष्फल हुए । संत-परंपरा में ये कथाएँ बहुत प्रचलित हैं कि प्रह्लाद के साथ कबीर की पूर्ण तुलना के लिये कथाएँ गढ़ी गई हैं। म्लेच्छ-कुल में पैदा होने पर भी कबीर वैष्णव हो गया था, इस दृष्टि से उसकी प्रह्लाद के साथ समानता थी ही। कबीर-ग्रंथावली में भी इनका वर्णन है । इसी से उसकी प्रामाणिकता को भी हम अमेध नहीं कह सकते । हाँ, अगर हम 'काजी' का अर्थ हिरण्यकश्यप का न्यायाध्यक्ष माने va 8 बूड़ा वंश कबीर का, उपजा पूता कमाल | हरि का सुमिरन छाँड़ि के, ले आया घर माल ॥ -वही १०१, ४१ । ४ अहो मेरे गोविंद तुम्हारा जोर । काजी बकिवा हस्तीतोर ॥... तीनि बार पतियारो लीना। मन कठोर अजहुँ न पतीना ॥ -वही पृ० २१०, ३६५; ३१४, १५५ । गंग गोसाइनि गहिर गभीर, जॅजीर बाँधिकर खरे हैं कबीर ।... गंग लहरि मेरी टूटी जंजीर, मृगछाला पर बैठे कबीर ॥ -वही. पृ० २८०, ५० ॥