पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१५०

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co हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय पाँच गुरुओं की रचना आदि ग्रंथ में संगृहीत है जो गुरु अर्जुनदेव के समय में संवत् १६६३ (१६०४ ई० ) में संपूर्ण हुअा। इस संग्रह में तब तक के सिख गुरुत्रों के अतिरिक्त अन्य भक्तजनों की वाणी का भी समावेश हुा । नानक ने बड़े आकर्षक और स्चिर पदों में भगवान् के चरणों में प्रान्म-निवेदन किया है । उनकी कविता मर्मस्पर्शी, सीधी- सादी और साहित्यिक कलाबाजी से मुक्त है। उन्होंने ब्रजभाषा में लिखा है. जिसमें थोड़ा सा पंजावीपन भी पा गया है नानक को आध्यात्मिक अनुभूति अत्यंत गहन थी इसलिए उन्होंने धन का तिरस्कार किया, किंतु श्रद्धालु भक्तों की भक्ति-भंट के कारण उनके पीछे के गुरुत्रों का विभव उत्तरोत्तर बढ़ने लगा, इसलिए उन्हें सांसारिक बातों को और भी ध्यान देना पड़ा। अकबर के समय तक तो गुरुओं का विभव शांतिपूर्वक बढ़ता रहा। स्वयं अकबर भी उसमें सहायक हुआ; उसी की दी हुई भूमि पर गुरु रामदास ने अमृतसर का प्रसिद्ध स्वर्णमंदिर बनवाया । परन्तु गुरु अर्जुन ने शाहजादा खुसरो से सहानुभूति दिखलाकर जहाँगीर से शत्रुता मोल ले ली और शाही कैद- की यंः सा से पांचवें दिन उनके प्राण छट गये । प्रत्येक नवीन गुरु को आत्मस्ता की अधिकाधिक आवश्यकता का अनुभव हुआ। नवम गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब ने बड़ी क्रूरता के साथ मरवाया । बध- स्थान में गुरु तेगबहादुर ने, पश्चिम से आनेवाले विदेशियों के द्वारा, मुगलशासन के नाश की भविष्यवाणी की जो अँगरेजों पर ठीक उतरी। सिखों ने इन अत्याचारों का बदला लेने का पूरा यत्न किया । छठे गुरु हरगोविंद के हाथों शाही सेना को गहरी हार खानी पड़ी थी । दराम गुरुगोविंदसिंह ने और भी महान् फल के लिए प्रयत्न प्रारम्भ किया। उन्होंने अपने सिखों में साहसी वीरों को चुन-चुनकर खालसा का संगठन किया, तमाखू और मदिरा का व्यवहार निषिद्ध कर दिया और केश, कंधा कटार, कछ और कड़े इन पाँच 'क'कारों के व्यवहार का आदेश किया