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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१५२

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय है कि किसी ने उन्हें कबीर की वाणी की शिक्षा दी थी। वोधसागर के अनुसार कमाल ने अपने पिता के सिद्धान्तों का प्रचार अहमदाबाद प्रादि स्थानों में किया था। अतएव अहमदाबाद का यह संत यदि कमाल का नहीं तो कमाल की शिष्य-परंपरा में किसी का शिष्य अवश्य था । डा. विल्पन के मन से कमाल की शिध-परंपरा में दादू से पहले जमाल, विमल और वुड्ढा हो गये थे। इसमें संदेह नहीं कि आज तक जितने बाह्य और आभ्यंतर प्रमाण उपलब्ध हुए हैं वे सब इस मत की पुष्टि करते हैं। दादू जाति के धुनिया थे। उन्होंने अपना अधिक समय आमेर में बिनाया। वहाँ से वे राजपूताना, पंजाब आदि स्थानों में भ्रमण के जिए चल पड़े, और अन्त में दराना में बस गये। वहीं संवत् १६६० में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी पोथी और कपड़े उस स्थान पर अब तक स्मारक-रूप में सुरक्षित हैं । दादू कई भाषाएँ जानते थे और सब पर उनका अधिकार था। सिंधी, मारवाड़ी, मराठी, गुजराती, पारसी सबमें उनकी कविताएँ मिलती हैं परन्तु उन्होंने विशेषकर हिंदी में रचना की है जिसमें राजस्थानी की विशेष पुट है । दादू की रचना कोमन और मृदु है किंतु उसमें कबीर की सी शक्ति और तेज नहीं है। सबके प्रति उनका भाई के ऐसा व्यवहार रहता था, जिससे वे 'दादू' कहलाये और उनके द्रवणशील स्वभाव ने उन्हें 'दयाल' की उपाधि दिलाई। उनकी गहन आध्यात्मिक अनुभूति की कया अकबर के कानों तक भी पहुंची। कहा जाता है कि बीरबल की प्रार्थना पर अकबर का निमंत्रण स्वीकार कर

  • चले कमाल तब सीस नवाई । अहमदाबाद तब पहुँचे आई ।।

-'बोधसागर', पृ० १५१५ । + धूनी गम उतपन्यो दाद योगेंद्रो महामुनी । सींगी' पौड़ी हस्तलेख, पृ० ३७३ ।