पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१५५

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1 दूसरा अध्याय है। इंपीरियल र जेटियर आव इंडिया में उनके महातरियाल नाम के एक ग्रन्ध की सूचना प्रकाशित हुई थी, जो माजूम होता है कि, कलजमेशरीफ से भिन्न नहीं है। इसके अतिरिक्त उन्होंने, प्रगटबानी, ब्रह्मबानी, बीस गिरोहों का बाब, बीस गिरोहों की हकीकत, कीर्तन, प्रेमपहेली, तारतम्य और राजविनोद, ये ग्रन्थ भी लिखे जो अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। मागरी-प्रचारिणी सभा की खोज रिपोटों + में इन ग्रन्थ से जो अवतरण दिये गये हैं, उन्हीं से हमे संतोष करना पड़ता है। प्राणनाथ विवाहित थे। उनकी स्त्री भी कविता करती थी। पदावली इस दंपति की संयुक्त रचना प्राणनाथ बहु-भाषा-विज्ञ थे। जहाँ जाते वहीं की भाषा सीख लेते थे। उनके कलजमे शरीफ की सोलह किताबों में से कुछ गुजराती में हैं, कुछ उर्दू में, कुछ सिंधी में और अधिकांश हिंदी में । हाँ, उनकी भाषा प्रत्येक दशा उबड़-खाबड़ और खिचड़ी है। अरबी, फारसी तथा संस्कृत का भी. उन्हें ज्ञान मालूम पड़ता है । प्राणनाथ बहुत पहुँचे हुए साधु समझे जाते थे। यहाँ तक कहा जाता है कि उन्होंने महाराज छत्रसाल के लिए हीरे की एक खान का पता लगाया था। मैं तो समझता हूँ कि वह खान भगवद्भक्ति थी। उन्होंने एक नवीन पंथ का प्रवर्तन किया जो धामी पंथ कहलाता है। और भगवान् के धाम की प्राप्ति जिसका प्रधान उद्देश्य है। इस पंथ के द्वारा उन्होंने प्रेम-पंथ का प्रचार किया जिसमें केवल हिंदू और मुसलमान ही नहीं, ईसाई भी एक हो सकें । अपने को तो वे मेहदी, मसीहा और कल्कि अवतार तीनों एक साथ समझते थे। राधा और कृष्ण के । ॐ भाग १६, पृ० ४०४ । + १९२४ से १६ तक की रिपोर्ट और दिल्ली में खोज की अप्रकाशित रिपोर्ट।