पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परमात्मा का ७६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय प्रेम के रूप उन्होंने भगवान् और भक्त के प्रेम के गीत गाये । मुहम्मद उनके लिए परमात्मा का प्रेमी था। उनके अनुसार प्रेम पूर्ण रूप था और विश्व उसका एक अंश मात्र । ॐ उन्होंने मांस, मदिरा और जाति का पूर्ण रूप से निषेध कर दिया । काठियावाड़ और बुंदेलखंड में उनके भक्त पाये जाते हैं; किंतु वे नाम मात्र के लिए धाभी हैं । हिंदू धर्म की सब प्रथाओं का वे पूरी तरह प्राचरण करते हैं। प्राणनाथ की मृत्यु सं. १७५१ में हुई। पंचमसिंह और जीवन मस्ताने प्राणनाथ के अनन्य भक्तों में से थे । पंचमसिंह महाराज छत्रसाल का भतीजा था। उसने भक्ति प्रेम आदि विषयों पर सवैये लिखे और जीवन मस्ताने ने पंचक दोहे। बाबालाल मालवा के क्षत्रिय थे। इनका जन्म जहाँगीर के राजत्व- काल में हुआ था । इनके गुरु चेतन स्वामी बड़े चमत्कारी योगी थे। उन्होंने इन्हें वेदांत की शिक्षा दी थी। स्वयं बाबालाल ६. बाबालाल के आश्चर्यजनक चमत्कारों की कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं, एक समय इन्हें भिक्षा में कच्चा अनाज और लकड़ी मिली । अपनी.जाँघों के बीच लकड़ी जलाकर और जाँव पर बर्तन रखकर इन्होंने भोजन को सिद्ध किया। शाहजादा दाराशिकोह बाबालाल के भक्तों में से था। बाबालाल की कोई हिंदी रचना नहीं मिलती, परन्तु उनके सिद्धांत नादिरुन्निकात नामक एक फारसी ग्रंथ में सुरक्षित हैं। सं० १७७५ में शाहजादा दाराशिकोह ने इस संत के उपदेश श्ववण करने के लिए सात बार इसका सत्संग किया था। इस सत्संग में जिज्ञासु दाराशिकोह के प्रश्नों के बाबाजान ने जो उत्तर दिये अब कहूँ इसक बात, इसक सबदातीथ साख्यात... ब्रह्मसृष्टि ब्रह्म एक अंग, ये सदा अनंद अति रंग ॥ --ब्रह्मबानी, पृ० १।