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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१५८

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हिन्दी काव्य में निगुण संप्रदाय का समकालीन बताया है । वेणीमाधवदास ने अपने मूल गोसाईचरित में लिखा है कि मुरार स्वामी के साथ इन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी के दर्शन किये थे। कड़ा में अब तक इनकी समाधि, वह मकान जहाँ इनको परमात्मा का साक्षात्कार हुआ था, माला, खड़ाऊँ, ठाकुरजी+ इत्यादि विद्यमान हैं जिनका दर्शन कराया जाता है। जगन्नाथजी में भी इनकी एक समाधि बतलाई जाती है, पर शायद वह किसी दूसरे मलूकदास की हैं। प्राचार्य श्यामसुन्दरदासजी ने कबीर ग्रन्थावली की भूमिका मेंx कबीर के एक शिष्य मलूकदास का उल्लेख किया है, जिसकी प्रसिद्ध खिचड़ी का उन्होंने वहाँ अब तक भोग लगना बताया है और कहा है कि कबीर को नीचे लिखी साखी उन्हीं को संबोधित करके लिखी गई है- कबीर गुरुबसै बनारसी सिख समंदां तीर । बीसारचा नहिं बीसर, जे गुण होइ सरीर ।%3 संभव है, पुरीवाली समाधि कबीर के शिष्य मलूक की हो । पीछे से दोनों मलूक एक ही व्यक्ति में मिल गये और लोगों ने दोनों स्थानों पर समाधि की उलझन को सुलझाने के लिए वह दन्तकथा गढ़ डाली जिसके अनुसार मलूकदास के इच्छानुकूल उनका शव गंगाजी में बहा दिया गया और स्थान-स्थान पर सन्तों से भेंट करता हुआ वह, समुद्र के रास्ते, जगन्नाथपुरी पहुँच गया। नाम मात्र की दीक्षा इन्होंने देवनाथजी से ली थी ; किन्तु

  • 'गोस्वामी तुलसीदास' (हिन्दुस्तानी एकेडमी), पृ० ३४४, ८३ ।

+ इनकी रचनाओं से तो मालूम हड़ता है कि ये मूर्ति के ठाकुरजी की शायद ही पूजा करते रहे हों। x क ग्रं०, भूमिका, पृ० २। वही, पृ०६८। ,