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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१६

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हम सगुणोपासना के स्थूल रूपों जैसे मूत्तियों तथा अवतारों आदि के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित करने के विरोध के कारण ही निर्गुणी कह सकते हैं। यहाँ पर यह भी उचित जान पड़ता है कि निर्गुण संप्रदाय की विभिन्नता हम, हिंदी काव्य के उन दो अन्य संप्रदायों के साथ भी समझ लें जो कुछ मात्रा तक इसके समान हैं और जिन्हें निरंजनी* तथा सूफी संप्रदाय कहते हैं । इनमें से पहला तत्वतः हिंदू है और दूसरा इस्लामी है । ये दोनों निर्गुण संप्रदाय से इस बात में भिन्न हैं कि ये जानसि नहिं कस कथसि अयाना । हम निर्गण तुम सरगुन जाना || कबीर ग्रंथावली, पृ० १३० । निर्गुन मत सोइ वेद को अंता। ब्रह्म सरूप अध्यातम संता ॥ गुलाल, (म० वा०, पृ० ११४)। खट दरसन को जीति लियो है। निरगुन पंथ चलाये नाम जो कबीर कहाये ॥ ग्रंथ शब्दावली (ह० लि.) में किसी सुरत गोपाल के अनुयायी का कथन ।

  • --निरंजनी संप्रदाय के प्रमुख कविः-अनन्ययोग के रचयिता अनन्य-

दास (ज० सन् ११६८) निपट निरंजन (संत सरसी, निरंजन संग्रह इत्यादि के रचयिता) (ज० सन् १५६३) भगवानदास निरंजनो (प्रेमपदार्थ व अमृतधारा के रचयिता) आविर्भाव काल सन् १६२६ ई० इस संप्रदाय के सम्बन्ध में अभी तक वस्तुतः कुछ भी नहीं किया गया है। इस संबंध में डॉ० बड़थ्वाल का एक अलग लेख उनके निबन्ध संग्रह में देखिये। सम्पादक। t-सूफियों के लिए पं० रामचन्द्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास' (पृ०६४, ११६) (तथा प्रस्तुत ग्रंथ के १७ से १० तक) पृष्ठ देखिये ।