८५ दूसरा अध्याय प्रधान स्थान छपरे जिले का माझी गाँव है । सं० १७१३ में इनका जन्म हुआ था। ये बड़े करामाती प्रसिद्ध हैं। कहते हैं कि एक बार ये अचा- नक और अकारण अपने पाँव पर पानी डालने लगे। बहुत पूछने पर इन्होंने बालाया कि जगन्नाथ जी के पंडे का पाँव जल गया है उसी को पानी डालकर बुझा रहा हूँ । जाँच करने पर बात सही मालूम हुई। संवत् १७३७ और १८२७ के बीच दरिया नाम के दो संत हो गए हैं। दोनों मुसलमान कुल में पैदा हुए थे। इनमें एक का जन्म बिहार में, बारा जिले के धारखंड नामक गाँव में हुआ और १३. दरिया-द्वय दूसरे मारवाड़ के जैतराम नामक गाँव में । बिहारी दरिया दरजी था और मारवाड़ी धुनिया । बिहारी दरिया के पंथ में प्रार्थना का जो ढंग प्रचलित है वह मुसलमानी नमाज से बिलकुल मिलता-जुलता है। 'कोर्निश' और 'सिज्दः' ये उसके दो भाग हैं । सीधे खड़े होकर नीचे झुकना कोर्निश और माथे को जमीन से लगाना सिज्दः कहलाता है। यह दरिया, कबीर के अवतार माने जाते हैं। कहते हैं कि इन्हें स्वयं एरमात्मा ने दीक्षा दी थी। इनका लिखा दरियासागर छप चुका है। मारवाड़ी दरिया सात ही वर्ष की अवस्था में पितृविहीन हो गए थे। रैना, मेड़ता में इनके नाना ने इनका पालन-पोषण किया । इनके गुरु बीकानेर के कोई प्रेमजी थे। कहा जाता है कि अपनी चमत्कारिणी शक्ति से इन्होंने एक दूत भेजकर ही महाराज बख्तसिंह को एक बड़े भयंकर रोग से मुक्त कर दिया । इनकी भी बानी प्रकाश में आ चुकी है। बुल्लेशाह एक सूफी संत थे। कहा जाता है कि इनका जन्म सं० . १७६० के लगभग रूम देश में हुआ था । 28 जान पड़ता है कि पारिवारिक विपत्ति ने इन्हें बहुत छोटी अवस्था में रमते 28 संतबानी-संग्रह, भाग १, पृ० १५१ ॥