८६ हिन्दी काव्य में निगुण संप्रदाय १४. बुल्लेशाह फकीरों की संगति में डाल दिया था जिनके साथ दस वर्ष की अवस्था में ही ये पंजाब प्रा गट्ने । इनके गुरु का नाम शाह इनायत बतलाया जाता है। ये परंपरागत धर्म को नहीं मानते थे। कुरान और शरत्र का इन्होंने खुल्लमखुल्ला खंडन किया। इसी से मुल्लाओं और मौलवियों से इनकी कभी नहीं पटी । इन्होंने सीधी-सादी पंजाबी में कविता की है। अपने क्रांतिकारी भावों को इन्होंने अपनी रचनाओं में बड़े धड़ाके से पेश किया है। कबीर के भावों को इन्होंने बहुत अपनाया है । ये जन्म भर ब्रह्मचारी रहे। इनका श्राश्रम जिला लाहौर के कसूर गाँव में था। वहीं लगभग पचास वर्ष की अवस्था में, सं० १८१० में, इनका देहान्त हुआ। इनकी गद्दी और समाधि भी वहीं हैं। चरनदास धूसर बनिया थे। इनका जन्म अलवर ( राजपूताना ) के डेहरा नामक स्थान में सं० १७६० के लगभग हुआ था। कहते हैं कि डेहरा में, जहाँ इनकी नाल गाड़ी गई थी वहाँ १५. चरनदास पर, एक छतरी बनी हुई है । यहाँ इनकी टोपी और सुमिरनी भी सुरक्षित बतलाई जाती हैं । इनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का कुंजो था । इनका घर का नाम रनजीत था । सात ही वर्ष अवस्था में ये घर से भाग निकले थे और अपने नाना के यहाँ दिल्ली चले आये। वहीं इनका लालन-पालन हुश्रा । कहते हैं कि वहीं इनको उन्नीस वर्ष की अवस्था में परमात्मिक ज्योति का दर्शन हुआ । इन्होंने अपने गुरु का नाम श्रीशुकदेव बताया है। कहते हैं ये श्री शुकदेव मुनि मुजफ्फरनगर के पास शुकताल गाँव के
- बानी (संतबानी सीरीज ), भूमिका, पंडित महेशदत्त शुक्ल
ने अपने 'भाषा काव्यसंग्रह' (नवलकिशोर प्रेस, सं० १६३०) में इन्हे पंडितपुर जिला फैजाबाद का निवासी बताया है । निधन संवत १५.३७ लिखा है ।-राधाकृष्णग्रंथावली, भाग १, पृ० १०० ।