दूसरा अध्याय ११ उतर जाय । किन्तु उसे इस बात का ध्यान न हुआ कि मैं अपने गुरु की प्रशंसा करने के बदले निंदा कर रहा हूँ। तुलसी साहब सरीखे मनुष्य को भी उसने ऐसे निर्बल चरित्रवाला बना दिया है जिसने लोक में अप्रिय होने के डर से सत्य को छिपा दिया और ऐसी बातों का प्रचार किया जिन पर उसको स्वयं विश्वास न था। वह इस बात को भी भूल गया कि स्वयं घटरामायण ही में अन्यत्र तुलसी साहब ने स्पष्ट शब्दों में सगुण रामायण का रचयिता होना अस्वीकार किया है । इसके अतिरिक्त इस क्षेपककार ने एक ऐसा घोर अपराध किया है जिसका मार्जन नहीं। उसने रामचरितमानस को, जिसने समस्त मानव जाति के हृदय में अपने लए जगह कर ली है, एक धोखे की कृति बना दिया है। तुलसीदास के साथ उनके नाम-सादृश्य से ही उनको अपनी पुस्तक का नाम घटरा..रण रखने की सूझी होगी परन्तु इससे आगे बढ़कर वे लोगों को यह धोखा नहीं देना चाहते थे कि मानस भी मेरी ही रचना है। उसका तो बल्कि उन्होंने खंडन किया है। घटरामायण के अतिरिक्त तुलसी साहब ने शब्दावली, पद्मसागर और रत्नसागर इन तीन ग्रन्थों की रचना की। शिवदयालजी का जन्म सं० १८८५ में श्रागरे के एक महाजन कुल • में हुआ था। इनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि ये बाल्यकाल से ही मननशील और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। कई दिन ५६. (स्वामीजी तक ये एकांत में ध्यानमग्न रहा करते थे। इनसे महाराज) जो सम्प्रदाय चला वह राधास्वामी मत कहलाता शिवदयालजी है। अपने संप्रदाय में ये स्वामीजी महाराज कहलाते हैं और सर्वशक्तिमान् राधास्वामी के अवतार समझे ॐ राम रावन जुद्ध लड़ाई । सो मै नहिं कीन बनाई। -'घटरामायण', भाग २, पृ० ११४ ।
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