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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१७४

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28 हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय झुके । निर्गुणी एकेश्वर के भक्त को प्रालंकारिक भाषा में पतिव्रता नारी कहते हैं । कबीर की दृष्टि में बहु-देव-वादी उस व्यभिचारिणी स्त्री के समान है जो अपने पति को छोड़कर जारों पर आसक्त रहती हैx; अथवा उस गणिका-पुत्र के समान है जो इस बात को नहीं जानता कि उसका वास्त- विक पिता कौन है + । नानक जिस समय-१ ॐ : सतिनामु करता पुरुख निरभो निरवैर अकालमूरति अजूनि सैभं (गुरु प्रसादि) की भक्ति का प्रचार कर रहे थे उस समय उनका प्रधान लक्ष्य बहु-देव-वाद का खंडन ही था। हिंदुओं को संबोधित कर कबीर ने कहा था- एक जनम के कारणे कत पूजो देव सहेसो रे । = काहे न पूजो रामजी जाके भक्त महेसो रे ॥:: १ यह सिर नवे त राम कू, नाहीं गिरियो टूट । आन देव नहिं परसिए, यह तन जायो छूट ।। -सं० बा० सं० १, पृ० १४७ ।

  • नारि कहावै पीव की, रहै और सँग सोय ।

जार सदा मन से बसै, खसम खुसी क्यों होय ॥ -वही, पृ० १८ । + राम पियारा छाड़ि कर, करै पान को जाप । वेस्वा केरा पूत ज्यू कहै कौन सू बाप । -क० ग्रं॰, पृ० ६, २२ । ॐ के प्लुत होने से कभी कभी 'ओ३म्' इस तरह भो लिखा जाता है । इस तीन अंक को कोई इस बात का सूचक भी मानते हैं कि अ+उ+म -इन तीन अक्षरों के योग से बना है । इन बातों से कोई यह न समझ बैठे कि प्रलय का त्रिविध स्वरूप है अथवा वह खंडित हो सकता है, इस भय से नानक ने 'ओ३ म्'की जगह '१ॐ' कर दिया है। = सहेसो-सहस्त्रों। :: क० ग्र०, पृ० १२६, १२७ ।