पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१७५

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तोसरा अध्याय ६५ मुसलमानों को दुइ जगदोस कहाँ ते आये कहु कौने भरमाया । अल्ला, राम, करीमा, केसो, हरि हजरत नाम धराया ॥ गहना एक कनक ते गहना तामें भाव न दूजा। कहन सुनन को दुइ करि थापे, एक नमाज एक पूजां ॥ तथा दोनों को कहै कबीर एक राम जपहु रे हिंदू तुरक न कोई ।। + हिंदू तुरक का कर्ता एकै ता गति लखी न जाई ॥x निर्गण संतों ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि जगत् का कर्ता-धर्ता एक ही परमात्मा है जिसको हिंदू और मुसलमान दोनों सिर नवाते हैं। यहाँ पर यह बता देना आवश्यक है कि हिंदू-बहुदेववाद वैसा नहीं है जैसा बाहर-बाहर देखने से प्रकट हो सकता है। हिंदुओं के प्रत्येक देवता का द्वैध रूप है-एक व्यावहारिक और दूसरा पारमार्थिक अथवा तात्त्विक । व्यावहारिक रूप में वह परब्रह्म परमात्मा के किसी पक्षविशेष का प्रतिनिधि है जिसके द्वारा याचक भक्त अपनी याचना की पूर्ति की प्राशा करता है । ब्रह्मा विश्व का सृजन करता है, विष्णु पालन और रुद्र उसका उद्देश्य पूर्ण हो जाने पर संहार ; लक्ष्मी धनधान्य की अधिष्ठात्री है, सरस्वती विद्या की, चंडी वह प्रचंड दिव्य शक्ति है जो अत्याचारी राक्षसों का विध्वंस करती है और युद्ध-यात्रा में जाने के पहले जिसका आवाहन किया जाता है इत्यादि । परंतु परमार्थरूप में प्रत्येक देवता पूर्ण परब्रह्म परमात्मा है और व्यवाहारिक पक्ष में अन्य सब देवता .. ॐ क० श०, ४, पृ० ७५ । + क० ग्रं॰, पृ० १०६, ५७ । ४ वही, १०६, ५८।