पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१७७

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तीसरा अध्याय 2.0 सैन्य-धारा निरंतर उमड़ी चली आ रही थी। उस समय उन्होंने हिंदुओं. को शोर बहुदेववादी पाया जो हिंदुओं को उनकी घृणा का भाजन बनाने का एक कारण हुा । परन्तु अल्लाह के इन प्यारों को स्वन में भी विचार न हुआ कि जिस बहुदेववाद से हम इतनो घृणा कर रहे हैं, हमारा मूर्ति-भंजक एकेश्वरवाद उससे भिन्न कोटि का नहीं है। विश्व का कर्ता-धर्ता चाहे एक देवता हो अथवा अनेक, इससे परिस्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं आता । सामो एकेश्वरवाद और विकृत हिंदू बहुदेववाद एक ही देववाद के दो विभिन्न रूप हैं। किंतु निर्गुण संतों ने परमात्मा-संबंधी जिस विचार-शृङ्खला का प्रसार किया, वह इनसे तत्वतः भिन्न थी। उसका मूर्ति-पूजा का विरोधी होना, इस बात का प्रमाण नहीं कि वह और मुसलमानी एकेश्वरवाद एक ही कोटि के हैं। दोनों में श्राकाश पाताल का अंतर है। मुसलमानों के ईश्वर-संबंधी विश्वास का निचोड़, 'ला इलाहे इल्लिल्लाह मुहम्मदर्रसूलिल्लाह', में आ जाता है, जो. कुरान के दो सूरों के अंशों के मेल से बना है। इसका अर्थ है, अल्लाह का कोई अल्लाह नहीं, वह एक मात्र परमेश्वर है और मुहम्मद उसका रसूल अर्थात् पैगंबर या दूत है। इस पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार गिबन ने कहा था कि जिस धर्म का मुहम्मद ने अपने कुल और राष्ट्र के लोगों में प्रचार किया था यह एक सनातन सत्य और एक आवश्यक कल्पना (ऐन एटर्नल ट थ ऐंड ए नेसेसरी फिक्शन) के योग से बना है । निर्गुण पंथ के प्रवर्तक कबीर ने इस कल्पना का तो सर्वथा निराकरण कर दिया और वह सत्य के मार्ग पर बहुत भागे बढ़ा। मुहम्मद के दूतत्व को तो उसने अस्वीकार करके ईश्वर संबंधी विचार को और भो महान्, और आकर्षक बना दिया । ॐ रोमन इंपायर, भाग ६, पृ० २२२ ।