हिन्दी काव्य में निर्गुणं संप्रदाय (इस्लाम और निर्गुण पंथ दोनों परमेश्वर को एक मानते हैं--परंतु दोनों के एक मानने में अन्तर हैं। इस्लाम की अल्लाह-भावना में अल्लाह एकाधिपति शाहंशाह के समान है जिसके ऊपर कोई शासनकर्ता नहीं, जिसकी शक्ति अनंत और अपरिमित है । हाँ, वह परम बुद्धिमान् और न्यायकर्ता है । उससे कोई बात छिपी नहीं रह सकती । हर एक आदमी के किये हुए छोटे से छोटे पाप और पुण्य का उसके यहाँ हिसाब रहता है। श्रद्धालु धर्मनिष्ठों को वह मुक्तहस्त होकर पुरस्कार वितरित करता है किंतु अविश्वासी पापिष्ट उसको निगाह से बच नहीं सकता; उसे अवश्य दंड मिलता है। क्योंकि जैसा कुरान कहती है, "जिधर ही मुड़ों उधर ही अल्लाह का मुख है" ।* यह बात नहीं कि इस्लाम में अल्लाह दयालु न माना गया हो । कुरान का प्रत्येक सूरा अल्लाह की दयालुता का उल्लेख करते हुए प्रारंभ होता है । मुहम्मद के अनुसार परमेश्वर क्षमाशील है। पक्षिणी का जितना गाढ़ा प्रेम अपने बच्चे पर होता है, उससे अधिक अल्लाह का आदमी पर । किंतु, इतना होने पर भी कुरान का अल्लाह 'भय बिनु होय न प्रीति' की नीति को बरतता है। वह प्रेम का परमात्मा होने के बदले का भय का भगवान् है। उसकी अनुकंपा और दयालुता उसकी अनंत शक्ति के ही परिचायक हैं। वह घोर दंड भी दे सकता है तो असीम अनुग्रह भी दिखा सकता है। "इस्लाम में प्रेरक भाव परमात्मा का प्रेम नहीं अल्लाह का भय है।" प्रेम से प्रभावित होना सामी जाति का स्वभाव नहीं है, उनके ऊपर केवल भय का असर पड़ सकता था । ॐ २,१०६ । + डिक्शनरी ऑव् इस्लाम, पृ० ४०१ में मिस्टर स्टेनली लेनपोल के अवतरण के आधार पर। उलटे कामाओं में उनके शब्दों का यथार्थ अनु- वाद है-"दि फ़ियर रादर दैन दि लव मॉन् गॉड इज दि स्पर दु इस्लाम ।"
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