पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१८९

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तोसरा अध्याय अंतिम उद्धरण में तोन का अर्थ त्रैलोक्य भी लगाया जा सकता । बिहारी दरिया ने अभय सत्यलोक को त्रैलोक्य के ऊपर बतलाया है।x परमात्मा को त्रैलोक्य के परे मानना ठीक भी है। परन्तु कबीर- पंथ में इसका बिल्कुल हो बाह्यार्थ लगाया गया और सत्यपुरुष निर्गुण से दो लोक ऊपर माना गया । बीच के दो लोकों के नाम सुन्न और भँवरगुंफा रखे गये और उनके धनियों ( अधिष्ठाताओं ) के बिना किसी संगति के ब्रह्म और परब्रह्म । यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि सुन्न बौद्धों के शून्यवाद की प्रतिध्वनि है, जिसमें सत्तत्व शून्यमात्र माना जाता है; योग में वह सूक्ष्म श्राकाश तत्व का बोधक होकर त्रिकुटी के लिए भी प्रयुक्त होने लगा। इसी प्रकार मुंडकोपनिषद् में परमात्मा का निवास गुहा में माना गया है। यह ज्ञानगुहा अववा हृदयगुहा दोनों हो सकता है। हृदय में योग के एक कमल ( चक्र) का भी स्थान है अतएव हृदयस्थ परमात्मा उसका भ्रमर हुआ और हृदय उस भ्रमर की गुहा । भँवरगुहा आगे चलकर अनाहत चक्र से अलग हो एक चक्र मानी जाने लगी। कबीर ने • भो ऐसा ही किया है 18 उन्होंने भँवरगुहा को लोक के अर्थ में प्रयुक्त नहीं किया है। x तीन लोक के ऊपरे अभयलोक विस्तार । सत्त सुकृत परवाना पावै, पहुँचै जाय करार ॥ -सं० बा० सं०, भाग १, पृ० १२३ । + बृहच्च तद्दिव्यमनंतरूपं सूक्ष्माच्च तत्सूक्ष्मतरं विभाति । दूरात्सुदूरे तदिहांतिके च पश्यत्स्विहैव निहितं गुहायाम् ।। -३, १,७ । बंकनालि के अंतरे, पछिम दिसा के बाट । नीझर झरै रस पीजिये, तहाँ भँवरगुफा के घाट रे ॥ -क० ग्र थ, पृ०.८८,४।