पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१९०

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११० हिदो काव्य में निर्गुण संप्रदाय नानक ने सचखंड अर्थात् सत्यलोक को वैष्णवों के समान सर्वोच्च लोक माना है जहाँ निरंतर कर्ता पुरुष का बास है। इसक्ने नीचे चार और लोक हैं जिनके नाम उन्होंने-नीचे से ऊपर का क्रम रखते हुए- यों दिये हैं-धरमखंड; सरम ( शर्म) खंड, ज्ञानखंड और करमखंड । सचखंड की यह भावना बाह्यार्थ-परक ही है, परंतु ऐसा भी नहीं मालूम होता कि नानक ने सूक्ष्म भावना को सर्वथा त्याग ही दिया हो । उन्होंने अपने सत्यनाम करता पुरुख का वर्णन प्रायः वैसे ही शब्दों में किया जो कबीर के मुख में रखे जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा त्रिगुणात्मक त्रैलोक्य में व्याप्त है, परन्तु है वह दोनों लोकों अथवा तीनों गुणों से बाहर, 'तीनि समावे चौथे वासा ।x गुलाल उसे चौथे से भी ऊपर ले गये-"ब्रह्म-सरूप अखंडित पूरन, चौथे पद सों न्यारो।"+ प्राणनाथ ने भी कहा है- . बाणी मेरे पीउ की, न्यारी जो संसार । निराकार के पार थै तिन पारहु के पार ॥: इस प्रकार परब्रह्म क्रमशः एक के बाद एक पद ऊपर उठने लगा। कबीर के नाम से भी कुछ ऐसी कविताएं प्रचलित हैं, जो वस्तुतः कबीर की नहीं हो सकतीं, जिनमें सत्य समर्थ और निरंजन के बीच छः पुरुषों के लोक हैं। इन छः पुरुषों के नाम हैं—सहज, ओंकार, इच्छा, सोहम्, अचित्य और अक्षर । इन छ: पुरुषों की सिद्धि के लिए एक नवीन सृष्टि. विधान की कल्पना की गई जिसके अनुसार सत्य पुरुष ने क्रमशः छः ब्रह्मों और उनके लिए छः अंडों की रचना की। छठे अक्षर ब्रह्म की दृष्टि x “ग्रंथ", पृ० ४५। + सं० बा० सं०, भाग २, पृ० २०६ ।

  • प्रगट बानी, पृ० १, ना० प्र० स०, खोज-रिपोर्ट ।