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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१९

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धर्मों की उन वाह्य विडंबनाओं का विरोध किया था जो धर्म के वास्त- . विक अभिप्राय से नितांत दूर रहा करती हैं और उनकी ऐसी भावना के ही उपलक्ष्य में तुकाराम ने उनकी गणना उन 'चार' में की थी जो वस्तुतः अनुकरणीय हैं ( चौधां ची तरिधरि सोमरे ) तथा पीपा एवं रैदास ने उन्हें क्रमशः नवखंड व त्रिलोक में विख्यात हुआ बतलाया था। कितने खेद की बात है कि सारग्राहिता की उक्त भावना को न समझ पाने के कारण कुछ विद्वानों ने कबीर को एक प्रच्छन्न मुस्लिम प्रचारक के रूप में मान लिया है। मेरी यह भी धारणा है कि निर्गुण संप्रदाय के अंतर्गत प्रायः उन सभी बातों का सुन्दर समावेश पाया जाता है जो भारतीय आध्यात्मिक विचारों में मूल्यवान् समझी जाती हैं। अपने सारग्राही स्वभाव के ही कारण इसने भारत की सभी आध्यात्मिक पद्धतियों के सारतत्व को अपना लिया है। भारत के विभिन्न आंदोलनों ने, समय-समय पर जाग्रत होकर, आध्यात्मिक संस्कृति के क्षेत्र में जो कुछ भी उसे प्रदान किया है वह, कबीर के आविर्भाव के पहले से ही, निर्गुण विचारधारा में सम्मिलित हो चुका था। अजपा जाप के साथ-साथ योगाभ्यास, तंत्रों से उधार ली गई उसकी रहस्यमयी शरीर-रचना प्रणाली, उसके द्वारा प्राण ओदि का उपयोग, शंकराचार्य का अद्वैतवाद, भक्ति की साधना- +-अन्य तीन में नामदेव, ज्ञानदेव तथा एकनाथ के नाम लिये जाते हैं (दे० रानाडे, 'मिस्टिसिज्म इन महाराष्ट्र ) । -पृ०२६५। +-तिहरे लोक परसिध कबीरा । -'ग्रंथ०' पृ० ६६८। नाव नव खंड परसिध कबीरा ॥ -~'सांगी' (पौड़ी हस्तलेख पृ० ३-७३ ।)