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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/१९२

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हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय स्वामी के नीचे रख दिया। उनका कहना है कि शिवदयाल जी ने जान बूझकर अनामी पुरुष को गुप्त रखा था। इतना ही नहीं, शिवदयाल जी ने सत्य को भी निर्गण से चौथा न मानकर चार लोक ऊपर माना और इस प्रकार बढ़ी हुई जगह को भरने के लिए एक और लोक और पुरुष की कल्पना की जिनके नाम क्रमशः सोहंग लोक और सोहंग पुरुष रखे गये । इस प्रकार सबसे नवीन संत- ( राधास्वामी) साहित्य में हम निरंजन अथवा निर्गुण को उत्तरोत्तर उच्च पदवाले धनियों अथवा पुरुषों की श्रेणी के पाद पर पाते हैं। निरंजन के ऊपर क्रम से ब्रह्म, परब्रह्म, सोहंग (सोहम् ) पुरुष, सत्य पुरुष, अलख पुरुष, अगम पुरुष और अनामी पुरुष हैं और सबके ऊपर राधास्वामी दयाल । इस संप्रदाय के अनुसार और धर्मों के लोग निरंजन अथवा उसके थोड़े ही ऊपर-नीचे के किसी पुरुष की आराधना करते हैं। यदि संत संप्रदायों में यह पर- प्रवृत्ति इसी प्रकार बढ़ती रही तो क्या आश्चर्य कि परमतत्व को कोई राधास्वामी से भी ऊपर ले जा रखे । परन्तु दर्शन-बुद्धि से तो यह श्राव- श्यक जान पड़ता है कि आवश्यकता से अधिक 'पर', ब्रह्म पर न जोड़े जायँ । इस दृष्टि से इस अतिशय 'पर'- प्रवृत्ति की कोई संगति नहीं बैठतो । एक बार जब परमात्मा को सगुण निर्गण दोनों से 'पर' बतला दिया तब एक के बाद एक और 'पर' जोड़ने से लाभ हो क्या हो सकता इस असंगत 'पर'-प्रवृत्ति का कारण यह है कि स्वामी रामानंदजी के सत्संग से प्राप्त जिन सूक्ष्म दार्शनिक विचारों का प्रचार कबीर ने किया था, कुछ काल उपरान्त उनके तत्वार्थ को दर्शन बुद्धि से समझना उनके अनुयायियों के लिए कठिन हो गया और वे अपने से पूर्ववर्ती संतों तथा अन्य धर्मावलंबियों के अनुभवों को अपने से नीचा ठहराने लगे । बौद्ध और सूझी मी आध्यात्मिक अभ्यासमार्ग में उत्तरोत्तर अग्रसर आठ पद