तीसरा अध्याय १३३ प्रवर्तन ये वेद-शब्दों से ही पृथक्-पृथक् रचे गये । तैत्तिरीय के अनुसार ब्रह्म के 'भू' उच्चारण करने से ही पृथ्वी की सृष्टि हो गई।+ ईसाइयों के धर्म ग्रंथों में भी इस सिद्धांत का उल्लेख मिलता है। मूसा के उत्पत्ति प्रकरण ('जिनेसिस' ) अध्याय , में लिखा है- "ईश्वर ने कहा, 'प्रकाश' हो जाय और प्रकाश हो गया ।" इत्यादि इत्यादि । यदि इसके साथ-साथ संत योहन की किताब का नीचे लिखा वाक्य पढ़ा जाय तो मेरा अभिप्राय और भी स्पष्ट हो जायगा। 'प्रारंभ में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था, शब्द ही ईश्वर था.। आदि में वह ईश्वर के साथ था । सब वस्तुएँ उसी ने बनायीं । कोई वस्तु ऐसी नहीं बनी जिसे उसने न बनाया हो, (अध्याय १-१, २, ३) मुसल- मानों का यह विश्वास भी कि खुदा के 'कुन' कहते ही सारा विश्व अाकाश में झूल पड़ा, इसी सिद्धांत की ओर संकेत करता है। निर्गुण संप्रदाय के सभी संतकवि सारतः नाद और विंदु के सिद्धांत को जिसे वेदांत की शब्दावली में स्फोटवाद कहते हैं, मानने में एकमत हैं, यद्यपि इस विषय का स्पष्ट उल्लेख किसी-ही-किसी की कविता में मिलता है। भेद इतना ही है कि और सब संत इन सब बातों को वस्तुतः सत्य मानते हैं परन्तु कबीर आदि अतिवादी संत केवल व्यावहारिक दृष्टि = नाम रूपं चा भूतानां कर्मणां च प्रवर्तनं । वेद शब्देभ्य एवादौ पृथक्संस्थाश्च निर्ममे । -मनु, १, २१ । + सभूरिति व्याहरत्स भूमिमसृजत् । -तैत्तिरीय वा० २, २, ४, २ । तैत्तिरीय ब्राह्मण में आगे बढ़ते जाइये। इस भाव का विशेष विस्तार मिलेगा। 8 क० ग्रं० पृ० ६४, १८ ।
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