१५६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय बौद्धिक (साइकिकल ), मानसिक ( मेंटल ) और आध्यात्मिक (स्पिरि- चुअल ), ये चार भूमिकाएँ हैं जिनका अगले अध्याय में यथास्थान वर्णन होगा। इसके अनुसार भी तीन ही दृष्टियाँ अथवा अंतवृत्तियाँ ठहरती हैं। क्योंकि सबसे निचली भूमिका की साधारण ज्ञान-दृष्टि किसी भी भूमिका की अतर्ज्ञानदृष्टि का स्थान नहीं ग्रहण कर सकती। दादू- दयाल ने जिसे 'चर्म दृष्टि' कहा है, वह बौद्धिक ज्ञान ही है जो निरे पशु के लिए अप्राप्य है। निर्गुणियों का सहजज्ञान अथवा ब्रह्मदृष्टि और संभवतः बर्गसां की अंतर्वृत्ति ( इंटयूशन) और हक्सले की तीसरी चीज (थर्ड थिंड) भी वह परम ज्ञान है जिसके द्वारा परमतत्व की स्वानुभूति होती है। निगेणी संतों के तात्विक सिद्धांतों और उपनिषदों की विचारधारा में बहुत स्पष्ट साम्य है । निर्गुणी संतों के तात्विक सिद्धांतों का वर्णन करते हुए महत्वपूर्ण स्थलों पर मैंने उपनिषदों की २. उपनिषद्, समान भावोंवाली उक्तियाँ उद्धत की हैं। जिसका मूल स्रोत उपनिषदों और तत्संबंधी साहित्य से कुछ भी परिचय हो, उसे इन संतों के सिद्धांतों और उपदेशों पर उप- निषदों का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देने में देर न लगेगी। कबीर श्रादिकों के सिद्धांतों का संक्षेप यों किया जा सकता है- सबके हृदय में परमात्मा का निवास है । उसे बाहर न ढूंढकर भीतर हूँढ़ना चाहिए । श्रात्मा ही परमात्मा है, दोनों में एकत्व भाव है । इस प्रकार प्रत्येक जीव परमात्मा है। यही नहीं एक अर्थ में जो कुछ है सब परमात्मा हैं । अन्य संतों के भी जैसा हम पीछे देख चुके हैं । थोड़े से अंतर के साथ यही सिद्धांत हैं। परंतु ये वस्तुत: अविकल रूप से उप- निषदों के सिद्धांत हैं। तत्ववित् प्रोफेसर रामचंद्र दत्तात्रेय रानडे ने अपने अंगरेजी ग्रंथ "कन्स्ट्रक्टिव सर्वे प्राव दि उपनिषदिक फिलॉसफी" में उपनिषदों के
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