तीसरा अध्याय १६१ परमात्मा उससे ऊपर समझा जाने लगा और वह निरंजन कालपुरुष कहाने लगा। निर्गण, अक्षर आदि नाम भी कालपुरुष ही के समझे जाने लगे। कबीर-पंथ की पौराणिक दंतकथाओं में यह बात पूर्ण रूप से पाई जाती है)। हाँ, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कबीर-पंथ की ये बातें कबीर की शिक्षाओं से विकसित होने पर भी उनके अनुकूल न थीं। इन कबीर-पंथी कथानकों में निरंजन परम पुरुष के [ अनुरागसागर के अनुसार सोलह और ज्ञानसागर के अनुसार पाँच ] पुत्रों में से एक था । इसने चालबाजी से अपने पिता से सातों द्वीपों की ठकुराई और अष्टांगी भवानी भी ठग ली। आदि माया अथवा आद्या पर वह इतना मोहित हुआ कि वह उसे निगल गया। आदि माया उसका पेट फाड़कर बाहर निकल आई। उसके बाहर आने पर निरंजन ने उससे अपना प्रेम प्रगट किया और दोनों के संयोग से ब्रह्मा, विष्णु, महेश ये त्रिदेव पैदा हुए और संसार चला। उनके पैदा होने के पहले ही निरंजन ने अदृश्य होने की प्रतिज्ञा की थी। ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी उसकी खोज न कर सके । खोज से लौटकर ब्रह्मा ने झूठ ही कह दिया कि मुझे पिता के दर्शन हो गये। इसलिये आद्या ने शाप दिया पूजा में तुम्हारा भाग न रहेगा और तुम्हारी संतति ब्राह्मण लोग पाखंडी होंगे। विष्णु जो खोज करते-करते पाताल लोक की अग्नि से झुलस कर काला हो गया था सबसे पूज्य बना दिया गया क्योंकि उसने अपनी असफलता स्पष्ट स्वीकार की और महादेव ने इस संबंध में मौन धारण किया और महायोगी बना दिये गये । इन्हीं त्रिदेव के द्वारा निरंजन जगत् के ऊपर शासन करता है और सबको धोखे में डाले रहता है। यहाँ तक कि परम पुरुष ने अपने पुत्र जिस ज्ञानी (कबीर) को जीवों को इसके चंगुल से बचाने के लिए नियुक्त किया था, उसने भी धोखे में आकर निरंजन से यह प्रतिज्ञा कर दी कि मैं सत्य, त्रेता और द्वापर युग में तुम्हारे काम में विशेष बाधा 1
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