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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२४६

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१६६ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय श्रादि दशावतारों को भी परमात्मा के अवतार मानने के लिए उनकी दृष्टि में कोई उचित कारण नहीं है। जन्म मरण से अस्पृष्ट परब्रह्म की मनुष्य रूप में अवतरित होकर जन्म-मरण में पड़ने की कल्पना करना तर्क और ज्ञान का सर्वथा विरोध करना है। कबीर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि ब्रह्म, राम और कृष्ण श्रादि अवतारों के रूप में अवतरित हुआ ही नहीं। उन्हीं के शब्दों में- ना जसरथि धरि औतरि आवा। ना-लंका का राव सतावा ॥ देवै कूख न औतरि अावा। ना जसवै लै गोद खिलावा ।। ना ग्वालन के सँग फिरिया। गोबरधन ले न कर धरिया ।। बावन होय नहीं बलि छलिया। धरनी वेद लै न उधरिया - गण्डक, सालिगराम न कोला । मछ कछ ह्व जल हि न डोला ।। बदरी बैसि xध्यान नहिं लावा । परसराम कै खतरी न सँतावा ॥ द्वारामती सरीर न छाड़ा। जगरनाथ ले प्यंड द गाड़ा॥: अन्य संतों ने भी इसी प्रकार स्पष्ट शब्दों में अवतारवाद को अ- स्वीकार किया है । दादू के शिष्य रजब ने कहा- "राम और परशुराम दोनों एक ही समय में हुए । दोनों आपस में एक दूसरे के द्वैषी थे। कहिये किसको कर्ता कहें । दत्तात्रेय, गोरखनाथ, हनुमान और प्रह्लाद ने न शास्त्र पढे, न शिक्षा पाई, फिर भी उन्हें सिद्ध शरीर प्राप्त हैं, वे अमर हो गये हैं, किंतु कृष्ण [ब्याध के ] एक ही बाण से मर गये।"+ रजब के गुरुभाई वषना कहते हैं कि इस प्रकार के स्वामी और ॐ यशोदा = मत्स्यावतार में x नारायण रूप में ।

क० ग्रन्थ, पृ० २४२-३ ।

+ परशुराम श्री रामचन्द भये सु एकै बार ।। तौ रज्जब द्व द्वेषि करि को कहिए करतार ।। सर्वांगी ४२, २६ (साखी)