पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२४७

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तीसरा अध्याय १६७ सेवक में किसी प्रकार का तात्विक भेद नहीं है। दोनों के कृत्रिम शरीर हैं। दोनों योनि के संकट में पड़ते हैं। दोनों में केवल मात्रा का भेद है। एक चींटी के समान निर्बल है तो दूसरा हाथी के समान शक्तिशाली।x दादू के अनुसार राम और कृष्ण दोनों माया के अंतर्गत हैं। गुलाल ने कहा कि अन्य जीवधारियों की ही भांति अवतारों को भी मोक्ष तभी प्राप्त हो सकता है, जब वे परमात्मा की भक्ति करें। पलटू के अनुसार चौबीसों अवतार काल के वश में हैं। राम, परशुराम और कृष्ण को भी मरना पड़ा।। तुलसी साहब ने तुलसीदास जी की निम्नलिखित दत्त गोरख हगावंत प्रहलाद । सास्त्रौ पढ़िए न सुनिए वाद ।। (पाठ-साध ?)॥ मारे मरै न सिद्ध सरीरं । कृष्ण काल बस एकहि तीरं ॥ -वही ४४,अंतिम साखी ।। ४ ठाकुर चाकर की किर्तम काया। जोनी संकट दोन्यों पाया ।। एक कुंजर एक कीड़ी कीन्हा । एक हि शक्ति घणेरी दीना ।। ना सौ बूढ़ा ना सो बाला । बषना का ठाकुर राम निराला । -वही, ४२, ८ (पद)

माया बैठी राम है ताकू लखै न कौइ ।

सब जग मान सत्त करि, बड़ो अचम्भौ मोहिं ।।१४४ माया बैठी राम है, कहै मैं ही मोहन राय । ब्रह्मा विष्ण महेस लौं जोनी आवै जाइ ।। १४३ -बानी. १ म, पृ० १२६ = सुर, नर, नाग मानुष, औतार, बिनु हरि भजन न पावै पार ॥ -म• बा• पृ० २२६ । I दस चौदह औतार काल के बसि में होई । पलटू आगे मरि रहौ आखिर मरना मूल । राम कृष्ण परसराम ने मरना किया कबूल । 'बानी',१ म,५४,११७ ।