१७४ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय यह बात गलत है। वह अवतार अथवा पैगंबर के अर्थ में अपने आप को परमात्मा नहीं कहते थे बल्कि उस अर्थ में जिसमें सभी परमात्मा हैं । उसने साफ शब्दों में कहा है कि मैं दृश्य जगत् के बहुरूपों को देखने के लिए ( सामान्य लोगों की भाँति जगत् में) आया था किंतु नजर में पड़ गया अनुनम परमात्मा 18 लोगों ने कबीर को समझने में गलती की। इसका कारण यह है कि कबीर को तो अपनी पारमात्मिकता की अनुभूति हो गई थी पर अन्य लोगों को नहीं । परन्तु इसमें भी संदेह नहीं कि कबीर के समय में भी गुरुआई के कारण खूब पाखंड फैल गया था । स्वयं कबीर के पदों से इस बात का समर्थन होता है। ऐसे ही गुरुओं के पाखंड को दृष्टि में रखकर उन्होंने कहा था, कि ज्ञानी मूल-ज्ञान को गवा- कर स्वयं कर्ता हो बठे हैं। / यद्यपि कबीर श्रादि निर्गुणी संतों ने सिद्धांत रूप से अवतारवाद का खंडन किया है फिर भी इसमें संदेह नहीं कि उनके अनुयायियों ने उन्हें अवतार बना डाला और सत्य की पूजा करने के बदले वे उन्हें अवतार बनाकर उनको स्मृति की पूजा करने लगे। कबीर-पंथ में कबीर पृथ्वी पर साक्षात् परमात्मा का रूप मान कर पूजे जाते हैं । निर्गुणियों के सिद्धांतों के आधार पर चलनेवाले प्रत्येक संप्रदाय और संप्रदाय- प्रवर्तक के सम्बन्ध में यही बात कही जा सकती है । इस प्रकार जिस बात का इन संत-महात्माओं ने विरोध किया उनके नाम पर चलनेवाले संप्रदायों ने उस बात को उन्हीं के व्यक्तित्व के साथ जोड़कर प्रकारांतर से स्वीकार कर लिया।
- आया था संसार में देखन को बहुरूप ।
कहै कबीरा संत हो, पड़ि गया नजर अनूप ।। -'क० ग्रं०,१४, २४ । + ज्ञानी मूल गँवाइया, आपण भये करता। -वही, पृ० ४१,२७ ।