चतुर्थ अध्याय १७७ यह मानना ठीक नहीं कि ऊपरवाली भूमियों के व्यापार नीची श्रणी की भूमि की सहायता के बिना सम्पन्न हो सकते हैं । यदि नीची श्रेणी के व्यापार विरोध करें और नियमोल्लंघन करके विकृत रूप धारण कर लें तो ऊँची श्रेणीवाले कुछ कर न सकेंगे । अतएव उन्हें इस प्रकार सुधार लेना चाहिए कि ऊँचे व्यापारों में बाधा उपस्थित करने अथवा उन्हें प्रभावित करने की जगह उन्हें स्वेच्छापूर्वक सहायता पहुँचाने लगें। जब इस प्रकार सभी व्यापारों के बीच, चाहे वे सबसे नीचे वा सबसे ऊँचे के हों एक प्रकार का सामंजस्य स्था हो जाता है तो उसी दशा में आत्मा अपनी वास्तविक स्थिति को प्राप्त होता है। विलियम किंग्सलैंड, जिन्होंने रहस्यवाद के विषय में वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया है, अपने 'सायंटिफ़िक श्राइडिलिज़म' ग्रन्थ में बतलाते हैं कि हमारी प्रकृति के पूर्ण स्पष्टीकरण के लिए कम से कम चार भूमियों का मान लेना आवश्यक होगा और उनके अनुसार ये भूमियाँ नीचे से ऊपर अथवा बाहर से भीतर के क्रम से, भौतिक, प्राणात्मक, मानसिक ! और आध्यात्मिक हैं 18 अनुभव की इन वैज्ञानिक भूमियों तथा वेदान्त-निरूपित कोशों में एक विचित्र समानता देख पड़ती है। भिन्नता केवल यही है कि, हिंदुओं के आध्यात्मिक शास्त्रों में व्यक्त प्राण सम्बन्धी महत्ता के कारण, वेदान्त ने किंग्सलैंड वाली भौतिक भूमि को अन्नमय एवं प्राणमय नामक दो भिन्न-भिन्न कोशों में विभाजित कर दिया है । इसके सिवाय, यह भी ध्यान में रख लेना आवश्यक है कि वेदान्त के अनुसार जीवात्मा के अंतिम अभीष्ट की पूर्ति श्रानन्दमय कोश-द्वारा भी नहीं हुआ करती। भूमि की भावना अपने विशुद्ध रूप में श्रात्मा से नितान्त भिन्न है 'किंग्सलैंड की आध्यात्मिक भूमि के अन्तर्गत आनन्दमय कोश एवं . ॐ पृ० २३३.
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