पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२७

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. ( ण ) पृ० ३४१ ) में छपाया था ] तथा नाभा जी के उन दो पद्यों द्वारा जो उन्होंने रामानद की प्रशंसा में लिखे थे, यह बात भली भाँति सूचित हो जाती है कि निर्गुण संप्रदाय के निर्माण में उनका कितना हाथ है । किंतु, मुझे इस बात को सूचित करते भी हर्ष होता है कि मैंने उनके दो छोटे-छोटे पद 'सर्वांगी' में पाये हैं और मुझे उनकी दो 'रामरक्षा'. तथा 'योगचिंतामणि' नामक छोटी-छोटी रचनाएँ भी मिली हैं जिनसे इस सम्बन्ध में उनका महत्व पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है । प्रस्तुत रचना का प्रधान अंश, गत पाँच वर्षों से मुद्रित रूप में पड़ा था और जहाँ-तहाँ साधारए संशोधन को छोड़ कर यह ठीक उसी आकार-प्रकार में प्रकाशित होने जा रहा है जिसमें वह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में डी० लिट० की उपाधि के निमित्त थीसिस के रूप में दिया गया था । उसमें सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन कबीर के परिचय का दुबारा लिखा जाना है जो रामानंद एवं कवीर के काल- विषयक मेरी सम्मति में परिवर्तन आ जाने के कारण आवश्यक हो गया था। मूल 'ग्रंथ सूची' को वर्तमान 'ग्रंथ-टिप्पणी' के रूप में विस्तृत कर दिया गया है और पुस्तक में उठाये गये जिन प्रश्नों के समाधान की आवश्यकता थी उन्हें 'विशेष बातें' ( परिशिष्ट ३ ) के अंतर्गत दे दिया गया है । अंत में मेरा यह कर्तव्य है कि मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष अपने गुरु प्रो० श्यामसुन्दरदास को अपने कृतज्ञतापूर्ण धन्यवाद समर्पित करूँ जिन्होंने मेरा खोज के काम में पथ-प्रदर्शन किया है। मैने कतिपय उन सुझावों से भी लाभ उठाया है जिन्हें डा० टी० ग्राहम बेली ने मुझे दिये थे और जिनके लिए मैं उन्हें अपना हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। मैं उन सब सज्जनों को भी

धन्यवाद देता हूँ जिनकी उदारता से ही मुझे कई महत्वपूर्ण हस्तलेखों

को देखने का सुयोग संभव हो सका। पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल ।