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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२७०

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९६० हिन्दो काव्य में निगुण संप्रदाय फटकारा है-"तुम एक क्षण के लिए भी जगत् के समक्ष न श्रीकर असत्य के बंधन का ही निर्माण कर रहे हो; तुम्हारी बातें धोखे से भरी हैं और वासनाओं से लदी हैं, जब तक तुम उन्हें सिर पर लिये हो तब तक हल्के किस प्रकार हो सकते हो। अपने भीतर सत्य, अनासक्ति और प्रेम के भाव सदा जाग्रत रक्खो। पलायन वृत्तिवालों का मार्ग कायरों का मार्ग है और भगवान् के मार्ग का अनुसरण करनेवालों के लिए नितांत अनुचित है। इस मार्गवालों को जगत् के आमने-सामने रहकर उसे निरपेक्ष भाव से देखना और उससे लड़ते हुए मुक्ति की ओर आगे बढ़ना है। उसके भीतर का अंत व बाहर युद्ध करनेवाले शूरवीर की लड़ाई से कहीं अधिक भयानक होता है। इस शरीर के भीतरी युद्धक्षेत्र में काम, क्रोध, मद एवं लोभ के साथ निरंतर युद्ध चल रहा है, वह युद्ध सत्य, संतोष व पवित्रता के राज्य में हो रहा है और जिस तलवार की झंकार सबसे अधिक सुन पड़ती है वह भगवन्नाम की है। सत्य की खोज करने वाली यह लड़ाई बहुत कड़ी और थका देने वाली है क्योंकि सत्य के खोजी का प्रण किसी शूर-वीर वा सती के प्रण से दृढ़ हुआ करता है । शूर-वीर केवल कुछ ही क्षणों के लिए युद्ध करता है, और सती का युद्ध मृत्यु के साथ समाप्त होता है, किंतु सत्यान्वेषी की लड़ाई रात-दिन तब तक चलती रहती है और बंद नहीं होती जब तक उसका जीवन वर्तमान है। निर्गुणी का काम वास्तव में, एक शूर-वीर का काम है। चरनदास के शब्दों में उसे यहाँ संसार में उसी प्रकार रहना है जिस प्रकार कमन कीचड़ व पानी में उत्पन्न होकर भी उससे लिप्त नहीं होता बल्कि 1 ॐ टैगोरः 'हंडैड सांग्स आव् कबीर', ६१ ।

  • टैगोरः हंडे,ड सांग्स, ३७ ।