पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/२७२

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कष्ट, विपत्ति १६२ हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय बाबालाल ने इसकी पुष्टि में मौलाना रूमी को उद्धृत किया है । संसार क्या है ? वस्त्र, धन, स्त्री और बच्चे नहीं, किंतु परमात्मा का विस्मरण ही संसार है । ये हमको बंधन में नहीं डालते बल्कि इनके प्रति हमारी प्रवृति ही ऐसा करती हैं । यदि हम अपने हृदय को ईश्वर में लगाये रहें और इनके प्रति शुद्ध मनोवृत्ति रख सकें तो ये हमारे श्राध्यात्मिक विकास में बाधा नहीं पहुंचा सकेंगे। जैसा दादू ने कहा है, 'अपने शरीर को संसार में रखते हुए भी अपने मन को राम में लगा दो, अथवा मृत्यु की ज्वाला कोई भी तुम्हें स्पर्श नहीं कर सकेंगे।x परंतु यद्यपि निर्गुणो अपने परिवार का त्याग करने को बाध्य नहीं तो भी उसे पारिवारिक जीवन का.उपभोग नहीं करना चाहिए । वह अपने पुत्र-कलन के साथ रहे । उसे अधिक संतति की वृद्धि करना इष्ट नहीं है । यदि वह ऐसा करता है तो वह अनासक्त नहीं और न वह वीर्यरक्षा के महत्व को ही समझता है जिसके लिए निर्गुण संप्रदाय ने इतना जोर दिया है। प्रलोभनों के बीच रहते हुए उनसे अभिभूत न होना निस्संदेह एक कठिन काम है। संसारी माया के आकर्षण भिन्न- भिन्न और दुर्निवार्य हुश्रा करते हैं । हमारे कानों में वह सदा कहा करती है, 'जरा इधर देखो, जितना सोना चाहो ले लो, सुन्दरी स्त्री ले लो, सभी विद्याओं में निपुण पुन ले लो, और यदि इच्छा हो तो, सारी पृथ्वी का राज्य अथवा अष्टसिद्धियाँ भी ले नो, तुम्हारे लिए नवो निधियाँ भी प्रस्तुत हैं । मैं इन्हें तुम्हें बिना माँगे ही दे देती हूँ। ये मनुष्यों व देवताओं के लिए भी दुर्लभ हैं और इनके लिए प्रार्थना करने पर त्रैलोक्य

  • विल्सन हिन्दू रिलीजस सेक्ट्स, पृ० ३५० ।

x देह रहै संसार में, जीव राम के पास ।। दादू कुछ व्यापं नहीं, काल झाल दुख त्रास ।। सं० बा० सं० भा. १, ६३