पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३४

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परंपरा चल निकली थी और उनसे क्रमश: परिचित होते जानेवाले व्यक्तियों की जिज्ञासा उन्हें अधिक से अधिक जानने की ओर बढ़ी जा रही थी। फिर भी इन सभी संतों को एक वर्ग-विशष, में गिनते हुए उसके सामूहिक अध्ययन की ओर कोई भी प्रवृत नहीं हो रहा था। सर्वप्रथम डॉ० वड़थ्वाल ने ही इस कार्य को अपने हाथ में लेने का प्रयत्न किया और उपलब्ध संत-साहित्य का एक साथ अध्ययन कर, संतों के समूचे वर्ग वा 'निर्गुण संप्रदाय' के विषय में अपने विचार प्रकट किये। २. डा० बड़थ्वाल का जीवन-वृत्त पीतांबरदत्त बड़थ्वाल का जन्म सं० १९५८ के १७ वें मार्गशीर्ष को पाली नामक एक साधारण से ग्राम में हुआ था । यह ग्राम गढ़वाल प्रांत के प्रमुख केंद्र लैंसडाउन से तीन मील की दूरी पर हिमालय की घाटी में बसा हुआ है । इनके पिता का नाम पं० गौरीदत्त बड़थ्वाल था और वे एक उच्च कुलीन ब्राह्मण, विज्ञ ज्योतिषी तथा पौराणिक विद्वान् थे। बालक पीतांबर को इसी कार ए सर्वप्रथम अमरकोश जैसे कुछ संस्कृत ग्रंथों को कंठस्थ करने की शिक्षा मिली थी और उसका अक्षरारंभ भी अपने घर पर ही कराया गया था। अपने जन्म- स्थान के निकट वर्तमान किसी पाठशाले में हिन्दी व संस्कृत की कुछ जानकारी प्राप्त कर लेने पर पीतांबरदत्त श्रीनगर ( गढ़वाल ) के गवर्नमेंट हाई स्कूल में प्रविष्ट हुए किंतु वहाँ से भी हटकर उन्हें पीछे लखनऊ के कालीचरण हाई स्कूल में अपना नाम लिखाना पड़ा। इस स्कूल के हेडमास्टर उस समय प्रसिद्ध वाबू श्यामसुन्दरदास जी थे। जिनके हिंदी प्रेम व साहित्यनिष्ठा ने विद्यार्थई पीतांबरदत्त को बहुत अधिक प्रभावित किया और जिनके साथ बढ़ता हुआ इनका परिचय क्रमशः भावी साहित्यिक सहयोग में भी परिवर्तित हो गया। पीतांबरदत्त ने अपनी स्कूल लीविंग परीक्षा सं० १९७७ में पासकर