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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३६३

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चतुर्थ अध्याय २८१ लगभग इन सभी निर्गुणियों के नाम जो अनेक बानियाँ प्रकाशित हैं और वह जीवन जिन्हें इनमें से बहुतों ने सत्य प्रचारकों के रूप में व्यतीत किये हैं तथा वह साहस भी जिसके साथ उनमें से कबीर जैसे कुछ लोगों ने अपने ऊपर किये गये अत्याचारों को सहन किया है इस बात को भली-भाँति प्रमाणित करते हैं कि उन ज्ञानी पुरुषों में बड़ी शक्ति थी जिसका उन्होंने उपयोग किया और उसे सर्व शक्तिमान के प्राणियों की सेवा में लगाया। हो सकता है कि कुछ लोगों ने 'सोऽहम्' के सिद्धान्त का अपना मान बढ़ाने के काम में उपयोग किया हो और अपनी ईश्वरीयता की केवल शाब्दिक अभिव्यक्ति-द्वारा अपने को सभी प्रकार के भौतिक व नागरिक कर्तव्यों से अलग कर लिया हो । कबीर के समय में भी समाज के कुछ धृष्ट व्यक्ति जो, सहजोबाई के शब्दों में 'प्रभु से अधिक प्रभुता, पर ही ध्यान देते थे - अपने को कुछ पंक्ति इधर से और वाक्यांश उधर से लेकर बनाई गई साखियों के आधार पर ज्ञानी प्रदर्शित करते थे। किंतु इस प्रकार का दोष उक्त मत के कारण नहीं आया था और न सच्चे निर्गुणी ही इसके लिए उत्तरदायी थे; यह सब उस अज्ञान वा उस भयंकर विपरीत ज्ञान के कारण था जो ईश्वरीय ज्ञान का दावा किया करता है। इस बात का विरोध निर्गुणियों ने अपनी सारी शक्ति लगाकर किया था। कबीर का कहना है कि, काल ऐसे झूठे ज्ञानियों के यहाँ हाथ में आदेशपत्र लेकर पहरा देता रहता -

प्रभुता . सब चहत हैं, प्रभु कू चहै न कोय । सं० बा० सं०, भा० १, पृ० १६० । + लाया साखि बनाय कर , इत उत अच्छा काट । कह कबीर कैसे जिये, जूठी पत्तल चाट । वही, पृ० ४१ । " ,