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पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३७२

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। २६० 'हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय इसे उन्होंने अपना विशेष लक्ष्य नहीं बनाया था फिर भी इसका उन्होंने स्पष्ट रूप में विरोध किया था। उन्होंने कहा है "बकरी गाय अथवा अपनी संतान में अंतर ही क्या है ? ईश्वर के नियम से सबके भीतर एक ही रक्त प्रवाहित हो रहा है। पीर, धर्मोपदेशक अथवा श्रौलिया सभी कोई मरने के लिए आये हुए हैं। अपने शरीर के पोषण के लिए व्यर्थ किसी के प्राण न लिया करो।"* यह तुम्हारी आत्मा को भूखों मार देगा। जो कोई ईश्वर की सृष्टि को प्राणियों की हत्या द्वारा नष्ट करना चाहते हैं वे कबीर के अनुसार राक्षस कहे जाते हैं । गोबध को वे ईश्वराज्ञा के विरुद्ध मानते हैं । गाय को दुहकर बछड़े को उसके दूध से वंचित करना भी उनके लिए असह्य था । मनुष्य के लिए उसका दूध पोना तथा मांस भी खाना मूर्खता एवं दुष्टता की पराकाष्ठा है। ऐसी कठोरतर अाज्ञाओं पर श्राश्रित अधोमुखी बुद्धि ने ही वेद व कुरान को झूठा बना डाला। मुल्ला से उनका कहना था “यदि तुम कहते हो कि एक ही ईश्वर सबमें विद्यमान है तो फिर मुर्गों की जान क्यों लेते हो" और इसी प्रकार वे पंडित से भी कहते थे "वेदों में दिये हुए उपदेशों का परिणाम यह होना चाहिए था कि तुम राम को सभी जीवों में देखा करो किन्तु अपने को मुनि कहते हुए भी तुम कसाई का काम करते हो • जीवों की हत्या करना तुम धर्म समझते हो तो फिर अधर्म किसे कहना चाहिए किसी के विरुद्ध अन्यायपूर्वक कथन करना भी शारीरिक मृत्यु के समान ही समझा जाता है। गाली देनेवालों को बड़े कड़े शब्दों में निन्दित किया गया है। परन्तु इस मार्ग के यात्री का उद्देश्य निर्मल जीवन व्यतीत करना मासु मासु कह मूरख झगड़े, ज्ञान ध्यान नहिं जाने । ग्रंथ साहब, पृ०६६। संत बानी संग्रह, भाग २ पृ० ४६ ।

  • सं० बा० सं०, भाग १ पृ० ४६ ।

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