पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/३९५

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पंचम अध्याय ३१३ श्राधार, ईसाईमत के स्रोत हैं, किंतु जो कुछ बुराइयाँ हैं "उनके लिए भारत के ही लोग दोषी हैं।"* उपर्युक्त दोनों ही मत भ्रांतिमूलक धारणाओं पर आश्रित हैं। पहले हम प्रथम मत पर विचार करें। इस मत के प्रतिपादित करने- वालों का यह कहना निरा असत्य है कि वैष्णव संप्रदायों का आविर्भाव सर्वप्रथम स्वामी रामानुज के समय में हुआ था। रामानुज के कई शताब्दी पहले से ही आडवार भक्त सारे उत्सर्गों के मूलस्वरूप प्रेम- धर्म को अपनी अनुराग भरी भाषा द्वारा प्रचलित करते आ रहे थे। वैष्णव लोग इनमें से कुछ आडवारों के लिए बहुत प्राचीन समय देना चाहते हैं । कहते हैं कि इनमें से सर्वप्रथम आडवार प्वायगइ का जन्म ईसा के पूर्व ४२०२ रे वर्ष में हुआ था। यद्यपि इतनी दूर तक जाने की आवश्यकता नहीं, फिर भी वे इतने प्राचीन तो अवश्य थे कि उन पर ईसाई सिद्धांतों का कोई प्रभाव न पड़ सकता था । ईसा की प्रथम शताब्दो में की गई सेंट टामस की भारत यात्रा, ऐक्टाटामा (Acta thomae) के संदिग्ध प्रमाण पर, आश्रित है और उसका कोई भी ऐतिहासिक श्राधार नहीं। डा० बर्गेन का मत है कि, यदि कोई भी टामस भारत में आया होगा तो, वह उस मेन्स ( Manes) का शिष्य अवश्य रहा होगा जिसकी मृत्यु लगभग सन् २७२ में हुई थी। शिष्यों को भारत में भेजना उक्त मेन्स की एक बहुत बड़ी आकांक्षा की बात थी। उसकी एक रचना का नाम 'A greater epistle to Indians' अर्थात् 'भारतीयों के नाम एक महत्त्वपूर्ण पत्र' है। डा० बर्गल का कहना है कि भारत में आनेवाले ईसाई

  • -वेवर 'कृष्ण जन्माष्टमी' (इंडियन ऐंटिक्वेरी, १८७४) पृ० २२५

व ४७-५२। 1-ए० गोविन्दाचार्य 'दि आडवार्स' (भूमिका, पृ.० ६०)।