पृष्ठ:हिन्दी काव्य में निर्गुण संप्रदाय.djvu/४१५

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पंचम अध्याय ३३३ रंगा हुआ है । इसके अतिरिक्त कोई भी दूसरो बात परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर सकती।"x पलकराम नानकपंथी...से. उन्होंने कहा था। "तुम नानक के मार्ग का अनुसरण नहीं कर रहे हो । नानक ने तुम्हें कहा है कि तुम उस गुरु का अनुसरण करो जो तुम्हें उस दूसरे वा सत्ता के एकमात्र प्रद की ओर ले जाय किन्तु इस समय तुम ऐसे गुरु के पीछे चल रहे हो जो तुम्हें ऐहिक बातों की ओर ही प्रेरित करता है । वे तुम्हें आदेश देते हैं कि प्रात्मा को 'काढ़कर' वा निकालकर उसे 'पर साध' वा परमात्मा में लीन करो किन्तु तुम 'कढ़ाव' भर हलवा । प्रसाद) तैयार करते हो। वे तुम्हें अमृत के उस तालाब में स्नान करने का आदेश देते हैं जिसे योगी लोग मानसरोवर कहा कहते हैं। उनका अभिप्राय पंजाब प्रांत स्थित अमृतसर के उस तालाब से नहीं था जिसकी तुम प्रशंसा किया करते हो। उन्होंने मूर्तिपूजा की निन्दा की थी, किन्तु तुम एक बाँस के डंडे को पूजा किया करते हो।"+ तुलसी साहब यहाँ पर उस झण्डे के उत्सव का उल्लेख करते हैं जिसे सिख लोग देहरादून में प्रतिवर्ष अप्रैल के मास में मनाते हैं । 'तुम मांस खाते हो, किंतु नानक के उपदेशों से ऐसा करना सिद्ध नहीं होता। उन्होंने सिखों की एक शाखा के साहेबजादा लोगों में प्रचलित इस प्रणाली का भी घोर विरोध किया है जिसके अनुसार वे लोग अपनी पुत्रियों को, उनके जन्म समय पर ही मार डालते हैं तुलसी साहब के इन विरोधसूचक शब्दों से निर्गुणपंथ का स्वरूप x-सुरति नारियर मोड़-नरियर ए से कबीर बतावे । मोड़त छिन पद पुरुष दिखावे-~- चौका सोइ साजा, जहाँ शब्द अखंडित गाजा। वही, पृ० २७० व १६० । +-वावे वाह मुरु बतलावा । तुमने याह गुरु मन लावा ....।